तिब्बती श्वास विज्ञान, माँ–ॐ उच्चारण साधना एवं योगासन
तिब्बती श्वास विज्ञान, माँ–ॐ उच्चारण साधना एवं योगासन
आधुनिक
तिब्बती श्वास विज्ञान,
प्राचीन तिब्बती प्रथाओं से प्रेरित एक सरल तकनीक है, जो गहरी और नियंत्रित सांसों के माध्यम से शरीर को डिटॉक्स करती है और
ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है। माँ–ॐ उच्चारण साधना मन को शांत और ऊर्जा चक्रों को
संतुलित करती है। योगासन करने से शरीर में लचीलापन, शक्ति और
रक्त संचार बढ़ता है। ये तीनों अभ्यास फेफड़ों को मजबूत करते हैं, प्रत्येक कोशिका तक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं, और समग्र
स्वास्थ्य को सुधारते हैं।
1a. तिब्बती श्वास विज्ञान
तिब्बती श्वास विज्ञान (प्राणायाम) सांस लेने की एक
आधुनिक तकनीक है। यह शरीर को ऑक्सीजन (प्राणवायु ) से भरकर टॉक्सिन्स को बाहर
निकालने में मदद करती है। तिब्बती प्राणायाम में गहरी और नियंत्रित श्वास शामिल
होती हैं, जो फेफड़ों, रक्त और मस्तिष्क को शुद्ध करती हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य अपशिष्ट गैसों को बाहर निकालती हैं, जिससे सेल (कोशिका) स्तर पर सफाई होती है और सम्पूर्ण शरीर में प्राणऊर्जा
का संचार होता है। यह प्राणायाम शरीर को डिटॉक्स करने में बहुत सहायक है। इस श्वास विज्ञान
को करने के लिए आप निम्नलिखित दो आसान चरणों में कर सकते हैं:
प्रथम
चरण:
धीमी
और हल्की साँस के साथ लगातार 7 दिन तक
1.
शांत जगह चुनें: एक शांत और आरामदायक
जगह पर जमीन में मोटा आसन बिछाकर बीरासन में या कुर्सी में बैठें।
2.
आँखें बंद करें: आँखें बंद करें और
दोनों हाथ, पैर की जंघाओं पर रखें।
3.
गहरी सांस लें: नाक से धीरे-धीरे और
गहरी सांस लें। अपने पेट को फुलाएं। सांस को फेफड़ों के सबसे गहरे हिस्से तक ले
जाएं।
4.
सांस रोकें: जबतक संभव हो सांस
रोकें।
5.
धीरे-धीरे सांस छोड़ें: मुंह से
धीरे-धीरे सांस छोड़ें। इस दौरान शरीर से तनाव और विषैले तत्वों को बाहर निकलने की
कल्पना करें।
6.
लय बनाएं: इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट
तक दोहराएं। धीरे-धीरे समय बढ़ाकर 15-20 मिनट तक करें।
दितीय
चरण:
तेज
और शक्तिशाली साँस के साथ लगातार करें
1.
तैयारी:
o शांत हवादार जगह चुनें। सुगंधित
धूपबत्ती जला सकते हैं (वैकल्पिक)।
o आरामदायक आसन में बैठें (बीरासन या कुर्सी पर)। रीढ़ सीधी, कंधे ढीले,
और हाथ घुटनों पर या जांघों पर।
o आंखें आधी खुली रखें, नजर फर्श पर 3-4
फीट आगे, या पूरी तरह बंद करें।
o मन को शांत करने के लिए कुछ गहरी
साँसें लें और निकालें।
2.
कल्पना करें:
o अपनी आँखें बंद करें और शांत हो
जाएँ।
o अपने पेट के नीचे, नाभि के आसपास,
एक छोटी सी चमकती आग की गेंद या गुब्बारे की कल्पना करें। यह आग का
गोला गर्म, चमकीला और ऊर्जा से भरा हुआ है।
o जब आप साँस लेते हैं, तो कल्पना करें कि यह गोला बड़ा और गर्म होता जा रहा है, जैसे साँस की
ऑक्सीजन इसे और चमकदार बना रही हो।
o यह कल्पना शरीर में आंतरिक गर्मी
और ऊर्जा को जागृत करने में मदद करती है।
3.
साँस लेना:
o नाक से गहरी साँस लें।
o पीछे की ओर थोड़ा झुकें, छाती को फैलाएँ और
साँस को जितना हो सके रोकें।
o कल्पना करें कि साँस की ऑक्सीजन उस
आग के गोले को और बड़ा व गर्म कर रही है।
4.
साँस छोड़ना:
o मुंह से जोर से साँस छोड़ें, जैसे स्ट्रॉ या पतले पाइप से हवा फूंक रहे हों या खाना बनाने
वाले प्रेशर कुकर की सीटी जैसी आवाज निकालें।
o जबतक सांस बाहर निकले उसे निकालते
ही रहें।
o साँस को बाहर रोकें, हल्के से थूक
निगलें और पेड़ू (पेल्विक फ्लोर) की मांसपेशियों को कसें।
o इससे पेट और डायफ्राम की
मांसपेशियाँ फेफड़ों से हवा निकालने में मदद करती हैं।
o जितना हो सके साँस बाहर रोकें, फिर नाक से गहरी
साँस लें और मांसपेशियों को ढीला करें।
5.
पुनरावृत्ति:
o इस पूरी प्रक्रिया को 10 -12 बार दोहराएँ।
6. समय:
o
सुबह खाली पेट तीव्र साँस के साथ
o
दोपहर खाने के पहले तीव्र सांस के साथ
o
रात्रि में सोते समय धीमी और हल्की साँस के साथ
o
प्रतिदिन 10-12 मिनट तीन बार करें।
7.
अंत में:
o
यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद, कुछ मिनट शांत
बैठें।
o
अपनी सांसों को सामान्य होने दें और शरीर में हल्कापन
और शांति का अनुभव करें।
o
कल्पना करें कि आपका शरीर शुद्ध, रोशनी से भरा हुआ
है और मन स्पष्ट है।
1b. माँ–ॐ उच्चारण साधना:
Maa-Om pronunciation practice
माँ–ॐ उच्चारण साधना एक आध्यात्मिक अभ्यास है, यह
साधना मुख्य रूप से बीज मंत्रों "माँ" और "ॐ" के क्रमशः उच्चारण
पर आधारित है, जो प्रकृति की शक्ति, ब्रह्मांडीय
चेतना और आंतरिक ऊर्जा को जागृत करती है। इस साधना का उद्देश्य शरीर में प्राणवायु
(आक्सीजन) की पूर्ति करना और मन व आत्मा को संतुलित करना, कुंडलिनी
जागरण में सहायक बनना तथा दैनिक जीवन की कठिनाइयों को दूर करना है। नियमित अभ्यास
से मानसिक शांति, चेतना जागरण और समग्र कल्याण प्राप्त होता
है।
उच्चारण विधि
(Pronunciation):
"माँ" और "ॐ" का उच्चारण लगातार क्रमबद्ध
तरीके से (पहले माँ और फिर ॐ) किया जाता है। दोनों को गहराई से, ध्यानपूर्वक लंबी सांस और ध्वनि के साथ बोला जाता है ताकि शरीर में कंपन महसूस
हो:
- माँ का
उच्चारण:
"माँ" को मधुर और स्पष्ट शब्दों से शुरू करें,
"आं" को लंबा खींचकर बोला जाए, जैसे "माआंआं"। इसमें भक्ति का भाव रखें, ध्वनि को हृदय चक्र पर केंद्रित करें।
- ॐ का
उच्चारण:
इसी प्रकार, "ओं" को गहरे स्वर
में शुरू करें, फिर "म" को नासिका (नाक) से
निकालते हुए लंबा खींचें, जैसे "ओओंओंमम"। यह
तीन भागों (अ-उ-म) में विभाजित है, लेकिन एक सतत ध्वनि
के रूप में बोला जाता है। सांस को नियंत्रित रखें, उच्चारण
के दौरान नाक से सांस लें और मुह से निकालें, मन को आज्ञा चक्र (भौंहों के
बीच) पर केंद्रित करें।
नोट: दोनों मंत्रों का उच्चारण मुंह अर्ध-बंद रखकर
करें, ताकि ध्वनि आंतरिक कंपन पैदा करे। उच्चारण की गति धीमी रखें, प्रत्येक मंत्र को कम से कम 20-30 सेकंड तक खींचें।
यह प्रक्रिया प्रतिदिन सुबह 10-15 तक करें।
ध्यान
और समापन:
o यह प्रक्रिया
पूरी होने के बाद 15
मिनट ध्यान में बैठें, नेत्र बंद कर आज्ञा चक्र पर "माँ"
की ममतामयी छवि या गुरुदेव जी की छवि पर फोकस करें।
लाभ:
- मानसिक शांति, तनाव
मुक्ति और ध्यान की गहराई बढ़ती है।
- शारीरिक डिटॉक्स, प्राण
ऊर्जा का संचार, फेफड़े मजबूत, रक्त संचार बेहतर।
- आध्यात्मिक जागृति, लक्ष्य
प्राप्ति और जीवन की विषमताओं से मुक्ति।
1c. योगासन: Yogasana
यह आसन न
केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, बल्कि टॉक्सिन्स को बाहर निकालने,
फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने और रक्त संचार को सुधारने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं। आइए, इन आसनों के लाभों को संक्षेप में
समझते हैं:
1.
ताड़ासन (Mountain Pose): यह आसन शरीर की मुद्रा को सुधारता है,
रीढ़ को मजबूत करता है और पूरे शरीर में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है।
यह तनाव को कम करके शरीर को ऊर्जावान बनाता है।
2.
हस्तपाद चालासन (Hastapada Chalasana): ये गतिशील आसन
मांसपेशियों को सक्रिय करते हैं, फेफड़ों को खोलते हैं और
रक्त प्रवाह को तेज करते हैं, जिससे शरीर से टॉक्सिन्स बाहर
निकलते हैं।
3.
दौड़ासन (Running Pose):
यह गतिशील आसन पैरों और कोर की मांसपेशियों को सक्रिय करता है,
फेफड़ों को खोलता है और रक्त प्रवाह को तेज करता है, जिससे शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं।
4.
हस्तचालासन (Hastchalasana):
यह गतिशील आसन कंधों और बाहों की मांसपेशियों को सक्रिय करता है,
फेफड़ों को खोलता है और रक्त प्रवाह को तेज करता है, जिससे शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं।
5.
कोणासन (Angle Pose):
यह स्थिर आसन रीढ़ और कमर को लचीला बनाता है, फेफड़ों
की क्षमता बढ़ाता है और रक्त संचार को बेहतर करता है, जिससे
टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं।
6.
गर्दन और सिर के व्यायाम (Neck and head exercises): ये आसन तनावग्रस्त मांसपेशियों को आराम देते हैं और सिर, गर्दन, कंधों में रक्त संचार को बेहतर बनाते हैं,
जिससे मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।
7.
सूर्य नमस्कार (Sun Salutation): यह एक समग्र
व्यायाम है जो शरीर के सभी प्रमुख अंगों को सक्रिय करता है। यह रक्त संचार को
बढ़ाता है, फेफड़ों को ऑक्सीजन से भरता है और पाचन तंत्र को
उत्तेजित करके टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है।
8.
शवासन (Corpse Pose): यह विश्राम आसन तनाव और थकान को कम
करता है, जिससे शरीर और मस्तिष्क को शांति मिलती है। यह
रक्तचाप को नियंत्रित करता है और शरीर की डेटोक्सिफिकेशन प्रक्रिया को समर्थन देता
है।
Thank
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