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• नारी सम्मान के बिना उद्धार नहीं! (No Progress without women empowerment)

नारी सम्मान के बिना उद्धार नहीं!
no progress without respect of women 

नारी सम्मान के बिना उद्धार नहीं!

(No Progress without women empowerment)

भारतीय समाज आदिकाल से ही पुरुषप्रधान रहा है। इसलिए, उसके सारे नियम-कानून प्रायः नारी के लिए ही रहे हैं और पुरुष ने उनसे स्वयं को सदैव मुक्त रखा है। उदाहरणार्थ, वह कुछ भी खा-पी सकता है, कभी भी आ-जा सकता है और किसी से भी मिलजुल सकता है। किन्तु, नारी यदि ऐसा करे, तो यह उसे कतई बर्दाश्त नहीं है। फिर भी, अभी तक हर काल में हमारे यहां नारी को पूरा सम्मान मिलता रहा है। किन्तु, इस कलिकाल में उसकी स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गई है।

वर्तमान परिदृश्य

नारी को बचपन से ही सदैव दबाकर रखा जाता रहा है। वैसे, मर्यादा में रहना बड़ी अच्छी बात है, किन्तु वर्जनाएं नारी और पुरुष दोनों कि लिए समान रूप से होनी चाहियें। पिता के घर में बालिका को देवी तो अवश्य कहा जाता है, किन्तु वहां पर सामान्यतया सारी खुशियां उसके भाई के ऊपर लुटाई जाती हैं और वह घोर उपेक्षा का जीवन जीती है। भाई को अच्छे से अच्छा खाना, कपड़ा और सुविधाएं दी जाती हैं, किन्तु उसे जो कुछ भी मिल जाता है, उसी में सन्तोष करती है।

तदुपरान्त, विवाह होते ही उसका देवीरूप समाप्त होजाता है और एक नया जीवन शुरू होता है-- प्रायः दहेज आदि को लेकर रोज-रोज सास-ननद के ताने तथा पति के द्वारा डांट-फटकार और मार-पीट! इन सबसे उसे तब मुक्ति मिलती है, जब या तो तंग आकर वह आत्महत्या कर लेती है, या ससुराल वालों के द्वारा जहर देकर या जलाकर उसकी हत्या कर दी जाती है।

सबसे बड़ा संकट

इस सबके अतिरिक्त, एक सबसे बड़ा अभिशाप जो भारतीय समाज में आज नारी को झेलना पड़ रहा है, वह है यौनशोषण! किशोरावस्था आते-आते, उस पर मनचले लोगों की कुदृष्टि पड़ना शुरू होजाती है। और, युवा होने के बाद तो उसका घर से बाहर निकलना दूभर हो जाता है। हर मोड़ पर उसे ऐसे नरपिशाच खड़े मिलते हैं, जिन्हें देखकर लगता है, मानों उसे साबुत ही निगल जाएंगे। आजकल खुलेआम बीच बाजार प्रायः छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती हैं। आम आदमी देखकर भी उन्हें अनदेखा कर देता है कि कौन चक्कर में पड़े? फलस्वरूप, हर जगह पर नारी भयभीत रहती है और अपने आपको असुरक्षित महसूस करती है।

अब से पच्चीस-तीस साल पहले बलात्कार की इक्की-दुक्की घटना कभीकभार सुनने या पढ़ने में आती थी। किन्तु, अब तो रोजाना ऐसी खबरों से अखबार रंगे पड़े रहते हैं। और तो और, आज पांच-पांच साल की बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं। इन सबके खिलाफ कोई भी आवाज उठाने वाला नहीं है। आम आदमी बिल्कुल संवेदनहीन हो चुका है, जैसे उसका जमीर मर गया हो।

दिल्ली में पैरामेडिकल की एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार जैसा कोई जघन्य एवं वीभत्स काण्ड जब कहीं पर होजाता है, तो अवश्य ही जनमानस क्षणिक रूप से उद्वेलित होजाता है और लोग सड़कों पर उतरकर हो-हल्ला करते हैं। उस भीड़ में भी अधिकतर चरित्रहीन एवं असामाजिक तत्त्व ही उपस्थित रहते हैं। इससे प्रशासन जरूर जल्दी हरकत में आता है। यथाशीघ्र अपराधियों को पकड़कर वह जेल में डाल देता है और कुछ समय बाद उन्हें फांसी दे दी जाती है, लेकिन ऐसा कुछ मामलों में ही हो पाता है। अफसोस की बात है कि कुछ सिरफिरे राजनेता युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बलात्कारियों की हिमायत करते हैं और कहते हैं, ‘‘बच्चों से गलती हो ही जाती है, लेकिन इसके लिए उन्हें फांसी नहीं दी जानी चाहिए।’’ तो क्या उन्हें महिमामण्डित किया जाना चाहिए?

ऐसे संवेदनहीन लोगों को बलात्कार की पीड़िता की वेदना का क्या अहसास होगा? किसी के घर में डाका पड़ जाता है, तो उस हानि की भरपाई देर-सवेर होजाती है, किन्तु जिसकी इज्जत लूट ली गई हो, उसकी भरपाई किसी तरह से भी सम्भव नहीं है। उल्टे, यह समाज उसे हिकारत की नजर से देखता है, जब कि इसमें उसका कोई दोष नहीं होता। कई लड़कियां तो इस कारण आत्महत्या कर लेती हैं कि वे अब समाज को कैसे अपना मुंह दिखाएंगी?

इस प्रकार, हम देखते हैं कि एक नारी का जीवनपथ प्रारम्भ से ही कण्टकमय है। किसी ने ठीक ही कहा हैः
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी!

विविध समस्याएं

पुरुषवर्ग शुरू से ही नारी के प्रति अन्याय करता रहा है। कोई भी पुरुष अपनी ससुराल में शहंशाह की भांति होता है। वहां पर उससे सभी डरते हैं कि वह कहीं नाराज न होजाय। इसलिए सब उसके आगे-पीछे घूमते हैं और उसकी खूब खातिर-तवाजह होती है। इसके विपरीत, नारी अपनी ससुराल में दासी बनकर रहती है। वहां पर हर कोई उस पर हुक्म चलाता है। आखिर क्यों?

नारी को प्रारम्भ से ही शिक्षा दी जाती है कि पति परमेश्वर होता है। उसकी सेवा करना उसका धर्म है, भले ही वह अज्ञानी, निकम्मा, नशेड़ी या दुराचारी ही क्यों न हो। इसीलिए, पति के सारे अन्याय सहन करते हुए वह उसकी दीर्घायु के लिए विभिन्न व्रत-त्योहार करती रहती है। वस्तुतः, पति वह परमेश्वर होता है, जो सदाचारी, चेतनावान् एवं कर्मवान् हो। अन्यायी-अधर्मी-निकम्मे पति को परमेश्वर कहना पति पद का घोर अपमान है।
पत्नी का देहान्त होने पर, पुरुष दो-चार बच्चे होने के बावजूद उनके लिए सौतेली माँ ले आता है। किन्तु, पति के न रहने पर निःसन्तान होते हुए भी नारी दूसरी शादी नहीं कर सकती। समाज में विधवाविवाह के लिए भी अनुमति होनी चाहिए।

किसी शारीरिक दुर्बलता के कारण कोई नारी यदि सन्तानोत्पत्ति के अयोग्य हो, तो उसका पति दूसरी शादी कर लेता है। किन्तु, यदि पुरुष नपुंसक हो, तो उसकी पत्नी ऐसा नहीं कर सकती। यह कैसी क्रूर विडम्बना है?

नारीसम्मान की आवश्यकता

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।
                          मनुस्मृति ।।।. 56-57
अर्थात् जहां पर नारियों का सम्मान होता है, वहां देवता आनन्दित होकर विहार करते हैं। जहां पर उनका सम्मान नहीं होता, वहां कितने ही अनुष्ठान कर लिये जायं, सभी निष्फल होजाते हैं। जहां पर नारियों की स्थिति शोचनीय होती है, वह वंश नष्ट होजाता है और जहां पर ऐसा नहीं होता, वह वंश सदैव समृद्धि की ओर अग्रसर होता है।
वर्तमान के सन्दर्भ में भगवान् मनु की यह वाणी अक्षरशः सत्य होती नजर आ रही है। हम स्पष्ट देख रहे हैं कि हमारा समाज तीव्र गति से बर्बादी की ओर जा रहा है, क्योंकि उसमें नारी की स्थिति अत्यन्त शोचनीय है।
यदि आप यह जानना चाहते हैं कि कोई राष्ट्र कितना उन्नत है, तो वहां की नारियों का अध्ययन करो। क्या वे भयमुक्त एवं चिन्तामुक्त हैं? यदि वास्तव में ऐसा है, तो वह राष्ट्र निश्चित रूप से विकसित है।

वस्तुतः, नारी राष्ट्र के भाग्य की निर्माता है, क्योंकि वह उसकी आत्मा के ढांचे को आकार देती है। पुरुष को भी नारी ही जन्म देती है और वही उसकी प्रथम गुरु भी है। उसी के कारण हमारा देश ‘त्यागभूमि’, ‘योगभूमि’ और ‘कर्मभूमि’ बना है। यदि आप नारी का सम्मान करेंगे, तो माता भगवती जगज्जननी जगदम्बा आपकी रक्षा करेंगी। इसीलिए नारी का सम्मान किया जाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

नारी के गुण

यदि देखा जाय, तो हमारे देश में धर्म मात्र नारियों के कारण ही चल रहा है। नारी सबसे अधिक सदाचारी एवं धार्मिक स्वभाव की होती है। उत्तमता नारी का स्वाभाविक गुण है। वह सच्चाई और धर्म के मार्ग से कम ही विचलित होती है। पुरुष में भी धार्मिक भावना वही भरती है। नारी, वास्तव में, शक्ति की अभिव्यक्ति है। परमसत्ता प्रकृति स्वरूपा माता भगवती का रूप भी नारी का ही है।

माता भगवती ने नारी के स्वभाव में असीम संयम एवं सन्तोष भर दिया है, जब कि पुरुष जल्दी असंयमित होजाता है। पुरुष असंयमित होकर यदि परिवार से विमुख होजाता है या उसका देहान्त होजाता है, तो नारी परिवार को संभाल लेती है। किन्तु, नारी के देहान्त के बाद, बिरला ही कोई पुरुष परिवार को संभाल पाता है। ऐसी स्थिति में वह प्रायः दूसरा विवाह रचाकर सुख लेना पसन्द करता है।

नारी को प्रायः अबला समझा जाता है, जब कि वास्तव में वह सबला है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को देखो, जिस अकेली ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे। आज भी हर क्षेत्र में नारी किसी भी तरह पुरुष से पीछे नहीं है। उसने माउण्ट ऐवरेस्ट पर अपनी विजयपताका फहराई है। अन्तरिक्ष में जाकर भी उसने कमाल दिखाएं हैं। वास्तव में, पुरुष ने ही उसे अबला बनाया है, अन्यथा उसके भीतर भी वे सारी अलौकिक शक्तियां भरी हैं, जो पुरुष के अन्दर हैं।

गांधीजी के उद्गार

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार, नारी को अबला कहना उसका घोर अपमान है। यह नारी के प्रति पुरुष का अन्याय है। यदि ‘बल’ का अर्थ पाशविक बल है, तो सचमुच नारी पुरुष की अपेक्षा बहुत कम पाशविक है। किन्तु, यदि ‘बल’ का तात्पर्य नैतिक बल से है, तब नारी अमापनीय रूप से पुरुष से कहीं ऊपर है।

नारी में विशाल सहजबुद्धि होती है, वह अधिक आत्मत्यागी है तथा उसमें अपरिमित साहस होता है। पुरुष की अपेक्षा नारी में स्नेह एवं सहनशीलता अधिक होती है। बिना नारी के पुरुष का अस्तित्व सम्भव नहीं है।
यदि अपनी स्वार्थान्धता में पुरुष ने नारी की आत्मा को कुचला न होता, तो नारी ने दुनिया के सामने अपनी उस असीम शक्ति का प्रदर्शन किया होता, जो उसके भीतर छुपी है। वास्तव में, नारी आत्मत्याग का आदर्श है, किन्तु दुर्भाग्यवश वह अपनी उस विस्मयकारी श्रेष्ठता को समझती नहीं है, जो उसमें पुरुष से अधिक है।
वस्तुतः, नारियां पुरुषों के सम्मोहक प्रभाव के कारण कष्ट झेल रही हैं। यदि उन्होंने अहिंसा की शक्ति को समझा होता, तो वे अबला कहलाने के लिए कदापि सहमत नहीं होतीं।

प्रकृति ने पुरुष और नारी को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। नारी पुरुष की सहचारी है, जिसमें उसके समान मानसिक क्षमताएं हैं। पुरुष के प्रत्येक क्रियाकलाप में भाग लेना उसका अधिकार है। जिस प्रकार पुरुष अपने कार्यक्षेत्र में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने का अधिकारी है, ठीक उसी प्रकार नारी भी अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने की अधिकारी है।

मात्र एक अनैतिक प्रथा के बल पर सबसे अज्ञानी और निकम्मे पुरुष नारी से श्रेष्ठ बनकर सुख लेते रहे हैं।  पुरुष ने नारी को अपनी कठपुतली मान रखा है, क्योंकि उसको शुरू से ऐसा होने की शिक्षा दी जाती है और उसे ऐसा ही सुखद भी लगता है। वास्तव में, नारियों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वे अपने पति के हाथों की गुड़िया नहीं हैं तथा पुत्र और पुत्रियों को सदैव पूर्ण समानता के आधार पर देखा जाना चाहिए।

हमारे जीवन में जो कुछ भी शुद्ध और धार्मिक है, उस सबकी विशिष्ट अभिरक्षक नारियां ही हैं। स्वभाव से रूढ़िवादी होने के कारण, यदि वे अन्धविश्वासी आदतों को छोड़ने में देर करती हैं, तो जीवन में जो शुद्ध एवं उदात्त है, उसे भी छोड़ने में वे जल्दी नहीं करतीं।

नारी अहिंसा की मूर्ति है, जिसका अर्थ है असीम स्नेह, अर्थात् दुःख सहन करने की अनन्त क्षमता। नौ महीने तक वह अपने गर्भ में शिशु को ढोती है और उसमें सुख का अनुभव करती है। प्रसव की पीड़ा से बढ़कर दूसरा दुःख क्या होगा? किन्तु, वह उसे भूलकर अपनी सृजनशीलता का सुख लेती है। वास्तव में, नारी को यह भूल जाना चाहिये कि वह पुरुष की वासनापूर्ति की वस्तु है।

नारी को अपनी रक्षा के लिए पुरुष की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये। उसे अपने चरित्र की शुचिता एवं उसके बल तथा भगवान् पर विश्वास करना चाहिये।

अस्तु, नारी पूज्या एवं सम्माननीया है। उसे सदैव सुरक्षित, भयमुक्त एवं सम्मानित अनुभव करना चाहिए। देश के प्रत्येक नागरिक का धर्म और कर्तव्य है कि वह नारी की सुरक्षा और सम्मान के प्रति सरोकार महसूस करे तथा उन्हें यथाशक्ति अपना योगदान दे।

सुरक्षा और सम्मान कैसे मिले?

नारी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि पुरुष के द्वारा आज उसे मात्र उपभोग की एक वस्तु समझ लिया गया है। ऐसा देखने में आया है कि वह घर के अन्दर प्रायः दहेज के कारण पीड़ित रहती है और घर के बाहर लोगों की हवस के कारण भयभीत रहती है। दहेज की समस्या लोभप्रवृत्ति तथा अपने कर्म पर विश्वास न होने के कारण है। फोकट में मिला धन और सम्पत्ति अधिक दिनों तक नहीं ठहरते, जब कि अपनी मेहनत की कमाई स्थायी होती है और उसकी रौनक ही कुछ और होती है। लोगों की हवस उनकी दुश्चरित्रता का परिणाम है। इन्हें हो-हल्ला करके या फांसी देकर समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए जनसामान्य को समुचित शिक्षा देकर चरित्रवान् एवं कर्मवान् बनाना पड़ेगा।

सच्चरित्रता का आदर्श

छत्रपति शिवाजी के एक सेनापति ने जब कल्याण का किला जीता, तो वहां पर अस्त्र-शस्त्र एवं अकूत धन-सम्पत्ति के अतिरिक्त एक अति सुन्दर नवयौवना भी उसके हाथ लगी। उसने सोचा यदि वह उसे नजराने के रूप में शिवाजी को भेंट कर देगा, तो वह प्रसन्न हो जाएंगे और उसकी पदोन्नति कर देंगे। फलस्वरूप, उस सुन्दरी को वह एक पालकी में बिठाकर शिवाजी के पास जा पहुंचा और उन्हें प्रणाम करके बोला, ‘‘कल्याण के किले से प्राप्त एक सुन्दर चीज आपको भेंट करने आया हूँ।’’

शिवाजी ने जैसे ही पालकी का पर्दा उठाया, उन्हें उस नवयौवना के दर्शन हुए। इससे उनका सिर शर्म से झुक गया और सहसा उनके मुख से निकला, ‘‘काश, मेरी माता जी भी इतनी खूबसूरत होतीं, तो मैं भी खूबसूरत होता।’’ फिर उस सेनापति को डांटते हुए बोले, ‘‘क्या तुम्हें नहीं मालूम कि शिवाजी दूसरों की बहू-बेटियों को अपनी माता की तरह मानता है? जाओ, इसे ससम्मान इसके घर लौटा आओ।’’

जब तक हमारा चरित्र शिवाजी के जैसा नहीं होगा, हमारे देश की नारियां भयभीत ही रहेंगी।

धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज नारी की वर्तमान शोचनीय स्थिति को देखकर अत्यन्त व्यथित हैं। आपके द्वारा संस्थापित भगवती मानव कल्याण संगठन के विभिन्न लक्ष्यों में से नारी को उसका सम्मान दिलाना भी उसका एक प्रमुख लक्ष्य है। आज तो लाखों सक्रिय महिला कार्यकर्ता संगठन के जनजागरण में सहयोगी बनकर जनकल्याण करते हुए अपना और अपने परिवार का आत्मकल्याण कर रही हैं।
सम्मान करो नारी का, यदि चाहते उद्धार।
नारी जग की जननी है, मूर्ति ‘माँ’ की साकार।।
मूर्ति ‘माँ’ की साकार, है सबका पालन करती।
भूखी स्वयं रह जाय, पेट हर इक का भरती।।
उसके सम्मान हेतु, निज करो निछावर जान।
करो नहीं अपमान, नहिं कर सको यदि सम्मान।।

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