• योगभारती समाज Yog Bharti Samaj
Yog Bharti Samaj |
योगभारती समाज (Yogbharti Society)
धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज तो असम्भव को सम्भव करने वाले हैं। वे जिस कार्य को मन में ठान लेते हैं, वह पूर्ण होता ही है। योगभारती समाज की नींव उन्होंने जातपात के भेदभाव को समाप्त करने के लिए ही डाली है और जल्दी ही जातपात की ये दीवारें गिरती नजर आएंगी।परम पूज्य गुरुदेव ने बाल्यकाल से ही कभी जातपात को नहीं माना। उनके द्वारा संस्थापित पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम में किसी से कभी भी यह नहीं पूछा जाता है कि उसकी जाति क्या है?
सभी लोग एक साथ बैठकर आरती एवं दुर्गाचालीसा पाठ करते हैं, भोजन करते हैं तथा भोजन परोसते भी हैं। नित्य प्रातः-सायं गुरुवरश्री के चरण स्पर्श का क्रम रहता है। वर्ष भर में दो या तीन बार शक्ति चेतना जनजागरण शिविर के अन्तिम दिन गुरुदीक्षा का कार्यक्रम होता है। इनमें से कहीं पर भी जातपात का कोई भेदभाव नहीं होता। हाँ, साफ-सफाई का ध्यान अवश्य रखा जाता है, जो अच्छी बात है।
परम पूज्य गुरुदेव जी का कहना है कि हम सभी मानव हैं। तब भेदभाव किस बात का? समाज में जो लोग छोटे काम करते हैं, साफ-सफाई आदि का काम करते हैं, उनका तो हमें कृतज्ञ होना चाहिए तथा उनका सम्मान करना चाहिए। यदि वे ऐसा न करते, तो समाज को कितनी परेशानी होती। जातपात के आधार पर किसी से नफरत करना घोर पाप एवं अत्यंत निन्दनीय अपराध है। आज ब्राह्मण भी सुश्री मायावती जी के पैर छूते हैं। तब उसी जाति के अपने पड़ोसी को गले लगाने में क्या दिक्कत है?
पूजनीय गुरुदेव भगवान् के द्वारा गठित भगवती मानव कल्याण संगठन में भी हर वर्ण एवं जाति के लोग पदाधिकारी हैं। यह पूर्णतया विशुद्ध रूप से एक आध्यात्मिक संगठन है। यह संगठन जैसे-जैसे मजबूती पकड़ेगा, तैसे-तैसे भ्रष्ट राजनेताओं एवं धर्मगुरुओं को अपना धरातल खिसकता नजर आएगा और देखते ही देखते जातपात का अभिशाप लुप्त हो जायेगा। भगवती मानव कल्याण संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए परम पूज्य भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का कड़ा निर्देश है कि जो लोग किसी जाति विशेष के संगठन से जुड़े हैं, वे स्वयं को उससे विलग कर लें, या फिर वे भगवती मानव कल्याण संगठन को छोड़कर चले जाएं। ये दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकेंगी।
परम पूजनीय सद्गुरुदेव भगवान् के द्वारा संस्थापित ‘योगभारती समाज’ में योग का अर्थ है, सभी को जोड़ना। और चूँकि, इसकी शुरूआत भारत से हुई है, अतः इसके साथ ‘भारती’ लगाया गया है।
इस समाज में सम्मिलित होने वाले लोग अपने नाम के साथ अब अपना जातिसूचक उपनाम नहीं लगाएंगे। उसके स्थान पर वे ‘योगभारती’ शब्द का प्रयोग करेंगे, अर्थात् उनकी मूल जाति समाप्त। उन सबका गोत्र ‘शक्तिपुत्र’ होगा, क्योंकि वे एक ही ऋषि श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से सम्बद्ध हैं। इस प्रकार एक दिन भारत में ही नहीं, अपितु समूचे विश्व में प्रत्येक व्यक्ति एक जाति और एक गोत्र का हो जायेगा। गुरुदेव जी के अनुसार- ‘धीरे-धीरे समाज के सभी लोग इस व्यवस्था को आत्मसात् करेंगे।’
समाज में अब तक एक ही गोत्र के वर-कन्या को भाई-बहन समझा जाता है। इसीलिए सगोत्र विवाह निषिद्ध हैं। तब पुरानी परंपराओं की रक्षा कर रहे धर्मगुरुओं के द्वारा पूछा जा सकता है कि ऐसे में विवाह किस आधार पर किये जायेंगे। इसका सीधा सा उत्तर यह है कि पुरातनकाल से ही सभी स्त्री-पुरुष भाई-बहन रहे हैं, क्योंकि वे सब एक ही माँ आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा की संतान हैं। वैसे भी समाज में आज पचास प्रतिशत लोग अपना गोत्र भूल चुके हैं। उनके भी विवाह बिना गोत्र का विचार किये सम्पन्न हो रहे हैं।
इस सम्बन्ध में पूजनीय भगवान् के द्वारा समय के साथ-साथ और विस्तृत चिन्तन दिया जाता रहेगा। कुछ भी हो, योगभारती समाज की अवधारणा आज के समय की मांग है। इसके बिना विश्व का उद्धार होने वाला नहीं। और यही कारण है कि समाज के प्रबुद्ध लोग बड़ी तेजी से योगभारती समाज से जुड़ रहे हैं। भगवती मानव कल्याण संगठन समाज के सभी जाति-धर्म के लोगों के साथ-साथ सत्यनिष्ठ प्रशासनिक एवं राजनैतिक वर्ग, बुद्धिजीवी वर्ग तथा सामाजिक संगठनों का युग परिवर्तन की इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए आह्वान करता है।
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