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• गोवधः एक सबसे बड़ा कलंक! (Murder of Gomata is huge disgrace)

गोवधः एक सबसे बड़ा कलंक!
murder of cows is shameful

गोवधः एक सबसे बड़ा कलंक!(Murder of Gomata is huge disgrace)

गोमाता धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष--इन चारों पुरुषार्थों को देने वाली हैं। इसीलिए, आदिकाल से ही गोपालन, गोसंरक्षण एवं गोसंवर्धन हमारी धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, लौकिक एवं परलौकिक आवश्यकता रहे हैं। अपनी उपयोगिता के कारण, गोवंश हमारी संस्कृति, सभ्यता एवं खुशहाली का प्रतीक रहा है। इसी के कारण हमारे देश में कभी दूध-दही की नदियाँ बहती थीं और वह ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था।

इतिहास बताता है कि हमारे देश में मुगलों के आने के बाद से गोहत्या शुरू हुई थी और उन्होंने ही बाद में उसे बन्द भी कराया।  बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ और मोहम्मद शाह आलम ने अपने शासनकाल में गाय की कुर्बानी बन्द रखी थी।

मुगल बादशाह बहादुर शाह के खास पीर मौलवी कुतुबुद्दीन ने फतवा दिया था कि ‘हदीस’ में कहा गया है कि ज़बह-उल-बकर, अर्थात् गाय की हत्या करने वालों को कभी भी बख़्शा नहीं जाना चाहिए। इस फतवे पर उस समय के निम्नलिखित बुज़ुर्गवारों के हस्ताक्षर हैंः मोहम्मद शाह गाज़ी आलम बादशाह, सैयद अताउल्ला खान फिदवी, काज़ी मियां असगर हुसैन और दरोगा आतिश खान हुजूरपुर नूर।

तदुपरान्त, गोवंश का असली विनाश अंग्रेज़ों के राज्य में शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। ब्रिटिशकाल में भी जिन मुसलमान शासकों ने अपनी रियासतों में गोहत्या को इजाज़त नहीं दी, वे थे नवाब राघवपुर, नवाब मंगरौल, नवाब तुजाना करनाल, नवाब गुडगांव और नवाब मुर्शिदाबाद। लखनऊ के भी छः उलेमा-ए-सुब्रत ने गोहत्या बन्दी का फतवा दिया था।

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रसिद्ध सेनानी हकीम अजमल खान का कहना था कि न तो कुरआन और न अरब की प्रथा ही गाय की कुर्बानी की इजाज़त देती है। मौलाना अब्दुल बारी साहब मरहूम फिरंगी महली ने सन् 1922 ई. में जब गाय की कुर्बानी को बन्द करने के लिए फतवा जारी किया था, तब महात्मा गाँधी ने उनका शुक्रिया अदा किया था और कहा था कि गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगाना आज़ादी से भी ज्यादा जरूरी है। स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु आयोजित जनजागरण की सभाओं में गाँधी जी प्रायः कहा करते थे कि आजादी मिलने के बाद सबसे पहली कलम की नोक से गोवध बन्द किया जायेगा। किन्तु, देश आजाद होने के बाद, बन्द होना तो दूर, गोहत्याएं लगातार बढ़ रही हैं।

आजादी मिलने के समय हमारे देश में लगभग 83 करोड़ पशुधन था, जो घटकर अब लगभग 10 करोड़ रह गया है। यदि यही हाल रहा, तो सन् 2020 ई. तक देश नितान्त पशुविहीन हो जाएगा। इस समय हाल यह है कि देशभर में 3600 से ज्यादा बूचड़खाने हैं। प्रतिदिन सुबह होते-होते वहां पर 50 से 60 हजार तक गोवंश काट दिया जाता है। इस प्रकार, यह धर्मर्प्राण देश विश्वभर में आज मांस विक्रेताओं में पहले नम्बर पर है। वास्तव में, इस देश पर यह सबसे बड़ा कलंक है।

वैसे, भारतवर्ष के अधिकांश भाग में गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा है, किन्तु यह कानून समुचित ढंग से लागू नहीं हो पा रहा है। अनेक प्रकरणों में शासकीय अधिकारियों की कसाइयों और बधिकों से मिलीभगत रहती है। विभिन्न स्थानों से ट्रकों में ठूँस-ठूँसकर भरा हुआ गोवंश गुपचुप तरीके से सड़क मार्ग के द्वारा बांग्लादेश और भारत के विभिन्न बूचड़खानों में पहुंचाया जाता है। राजकीय अधिकारी उन्हें पकड़ते हैं और पैसे लेकर छोड़ देते हैं। तथापि, देश के वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने गोहत्या बन्दी को आगे बढ़ाने का वायदा किया है। लगता है दूसरे वायदों की तरह उनका यह वायदा भी कभी पूरा नहीं होगा और वह सत्तासुख भोगते रहेंगे।

कुछ लोगों का मिथ्या विश्वास है कि हमारे देश में मुसलमानों की वजह से गोहत्या बन्द नहीं हो रही है। आइये, देखते हैं कैसे?

गाय को बचाना ही देश को बचाना है। जिसने गाय बचाई, समझो उसने देश बचाया।’ ये उद्गार हैं अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य इमाम श्री उमर अहमद इलियासी जी के। वह स्वयं शाकाहारी हैं और देश-विदेश में शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए शाकाहार की उपयोगिता को प्रामाणिक ढंग से बताते हैं। अनेकता में एकता का मन्त्र लेकर सर्वधर्म समभाव सभाओं में वह लगातार देश-विदेश जाते रहते हैं।

लोधी रोड, दिल्ली स्थित इनहैबिटैट सैण्टर में अखिल भारतीय शाकाहारी जैन समाज के द्वारा आयोजित सभा में मंच पर भाषण देने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए इलियासी साहब ने कहा, ‘‘मै स्वयं कृष्णवंशी हूँ। हम लोग गाय को पालते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है कि गाय का दूध और घी तन्दुरुस्ती के लिए शिफा हैं, जब कि गोमांस बीमारी पैदा करता है। आज देश की दुर्दशा के लिए हम खुद जिम्मेदार है। जिस गाय को गोशाला में होना चाहिए, वह सड़कों पर मारी-मारी फिर रही है और दुर्घटना का शिकार होकर मर रही है।

अब तो मुस्लिम भाई भी शाकाहार की तरफ रुख कर रहे हैं। दरअसल, शाकाहार के बहुत फायदे हैं। शाकाहारी व्यक्ति मांसाहारी के मुकाबले निरोगी होता है। वह क्रोधी नहीं होता और उसके दिल में दया रहती है। वह अच्छे कार्य करने में आगे रहता है। उसमें भाईचारे और एक-दूसरे की मदद करने तथा दूसरे का दिल न दुखाने की भावना रहती है।

आज हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। गाय जीवनभर हमें दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र देकर हम पर उपकार करती है, लेकिन बदले में हम उसे क्या देते हैं? उसे आवारा पशु की तरह छोड़ देते हैं। हमें उसका आदर-सम्मान करना चाहिए। गाय की सेवा के बराबर कोई धर्म नहीं है।

बाबर बादशाह ने बाबरनामे में यह आदेश बाकायदा पारित किया था कि गोहत्या इस्लाम के विरुद्ध है।
सरकार से आग्रह है कि देश की तरक्की के लिए एक ऐसा गाय मंत्रालय बने, जो उसकी हिफाजत, भोजन और उसे गोशाला में रखने की व्यवस्था करे। मछलीबोर्ड, बकरीबोर्ड और ऊंटबोर्ड पर तो सरकार अरबों रुपए खर्च करती है, लेकिन गाय की रक्षा के लिए आज तक कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाए गये।

इस विषय में अब कतिपय हिन्दुओं के भी विचार सुनिए। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश एवं भारतीय प्रैस परिषद् के पूर्व सभापति न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू कहते हैं, ‘‘मैं एक हिन्दू हूँ। मैने गोमांस खाया है और यदि मौका मिला, तो दोबारा भी खाऊंगा। किन्तु, अपने पारिवारिक सदस्यों की भावनाओं का आदर करने के लिए सामान्यतया मैं इससे दूर रहता हूँ, क्योंकि वे रूढ़िवादी हिन्दू हैं। एक लोकतांत्रिक देश में लोगों को, जो वे चाहें, उसे खाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। गोमांस खाने में मुझे कुछ भी गलत नहीं दिखता।’’

ऐसे तथाकथित प्रगतिशील म्लेच्छ लोगों को ‘हिन्दू’ कहना हिन्दूधर्म का घोर अपमान है। काटजू साहब ने कानून की कितनी ही किताबें क्यों न पढ़ ली हों और कानून के क्षेत्र में कितनी ही विशेषज्ञता क्यों न प्राप्त कर ली हो, किन्तु वह रहेंगे सदैव अज्ञानी ही। एक पुरानी कहावत है कि यदि किसी गधे की पीठ पर ढेर सारी किताबें लाद दी जाएं, तो वह पण्डित या ज्ञानी नहीं बन जाता।

यह वही न्यायमूर्ति काटजू हैं, जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को ‘ब्रिटिश एजेण्ट’ कहा था। इस बात को लेकर बड़ा विवाद हुआ था और ग्वालियर के वकीलों ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाया था। यह एक अलग बात है कि उच्चतम न्यायालय ने उन्हें इससे बरी कर दिया था। इस प्रकार के लोगों को ऐसे विवादास्पद बयान देकर सुर्खियों में बने रहने में बड़ा आनन्द आता है।

कुछ दिन पहले कुछ फिल्मी हस्तियों ने भी गोहत्या बन्द किये जाने के विरोध में अपना मत व्यक्त किया था। और, अफसोस की बात यह है कि उनमें अधिकतर हिन्दू थे। माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा उन्हें सद्बुद्धि दें। गोहत्या निषेध के विरोधी वास्तव में राक्षस हैं, चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों या कोई और। स्पष्टतया, गोहत्या को किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय से जोड़ना उचित नहीं है।

अस्तु, जिन बूचड़खानों में गोमांस विक्रय होता है, वे प्रायः यान्त्रिक होते हैं। वहाँ पर कई गाय-बैलों को एक सीध में खड़ा कर दिया जाता है। उसके बाद लोहे का एक तेज धार का ब्लेड ऊपर से गिरता है और उन सबके सिर एक साथ धड़ से अलग होजाते हैं। तत्पश्चात्, उनकी खाल और मांस अलग-अलग करके बेच दिये जाते हैं।

किन्तु, ऊंची क्वालिटी का चमड़ा तैयार करने वाले बूचड़खानों में जीवित गोवंश को सबसे पहले लाठी और डण्डों से बड़ी बेरहमी के साथ पीटा जाता है। इससे उनका शरीर सूज जाता है। तब उनके ऊपर उबलता हुआ गर्म पानी डाला जाता है, जिससे उनका शरीर उबल जाता है और वे बेहोश होजाते हैं। अब उनकी खाल इस प्रकार उतारी जाती है, जैसे उबले हुए आलू को छीला जाता है। इससे ऐक्स्पोर्ट क्वालिटी के बैग और जूते बनाए जाते हैं, जो ऊँचे दामों पर बिकते हैं। यह निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है।

इस सम्पूर्ण सृष्टि पर जितना उपकार गाय का है, उतना किसी भी प्राणी का नहीं है। अतः जो व्यक्ति गाय का आदर नहीं करता, उसकी सेवा नहीं करता तथा क्रूरता के साथ उसकी हत्या करता है, वह कृतघ्न है। और, कृतघ्न का कभी कल्याण नहीं हो सकता।

गोमाता अवध्य है। वह रक्षणीय है। उसे साक्षात् देवस्वरूप मानकर उसकी रक्षा करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। वह एक ऐसी प्रत्यक्ष देवता है, जो अनन्तकाल से मानवता को अपना कृपाप्रसाद प्रदान करती आ रही है। इसीलिए वह प्रणम्या एवं पूजनीया है।

गोमाता धर्म की जननी भी है। यदि गाय नहीं होगी, तो धर्म भी नहीं होगा। गाय के अन्दर सबसे अधिक सात्त्विकता होती है। इसलिए अपने अन्दर सात्त्विकता अर्जन के लिए गोसेवा जरूरी है। और, सात्त्विकता का अर्जन करके ही हमारी वास्तविक उन्नति होगी।

हमारी सारी समस्यायों की जड़ गोहत्या है और उसका समाधान गोसेवा है। वस्तुतः, गाय में हमें कभी भी पशुबुद्धि नहीं करनी चाहिए। उसमें सदैव भगवद्बुद्धि करो। जब उसे भगवत्स्वरूप मानकर सेवा करेंगे, तो हमारी सेवा में दोष नहीं होगा और वह रुचिपूर्वक होने लगेगी।

किन्तु, कृषि के मशीनीकरण और लोगों की भोगवादी प्रवृत्ति के कारण उन्होंने गोवंश की उपयोगिता को भुला दिया है। ट्रैक्टर से जुताई होने लगी तथा रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग होने लगा। क्षणिक लाभ की अकांक्षा के कारण, इन सबके परिणामस्वरूप अब दीर्घकालीन हानियाँ उजागर हुई हैं। केंचुए की भांति अनेक जीवाणु, जो मिट्टी खाकर फसलों को पोषक तत्त्व देते थे, खत्म होने से जमीन बंजर हो रही है तथा खाद्यान्न विषैले होने के कारण मानवजाति नाना प्रकार के रोगों से ग्रसित हो रही है। आज किसानों की दुर्दशा साफ दिख रही है। किसान लोग जब गाय पालते थे, तो उन्हें जैविक खाद घर बैठे ही प्राप्त होजाती थी। आज भी उनके लिए ट्रैक्टर नहीं, गोवंश उपयोगी है।

गोवंश में ही राष्ट्र का विकास है, हित है और वास्तविक उन्नति, समृद्धि और सम्पन्नता है। इसलिए साधु-संत-महात्माओं को चाहिए कि वे गांव-गांव और घर-घर जाकर लोगों को गोरक्षा के लिए जाग्रत् करें और तब तक चैन से न बैठें, जब तक गोहत्या बन्द न होजाय।

भारत के जितने बड़े-बड़े मंदिर और तीर्थ हैं, उनके संचालक तथा सभी सनातनधर्मी धर्माचार्य एक साथ बैठकर यदि यह निर्णय कर लें कि वे भगवान् की सेवा-पूजा में गव्य पदार्थों का ही उपयोग करेंगे, तो गोवध स्वतः बन्द हो जायेगा। ठाकुर सेवा का मूलाधार गाय ही है। चर्बीयुक्त घी की बनी मिठाई-पूड़ी, जब ठाकुर जी पर चढ़ाते हैं, तो क्या वे उन्हें स्वीकार करेंगे? तब वह प्रसाद कैसे होगा?

आज सब जगह यज्ञों-अनुष्ठानों में प्रायः चर्बीयुक्त घी की आहुतियां दी जा रहीं हैं। विचारणीय है कि इससे देवता प्रसन्न होंगे या राक्षस? और, इसके प्रत्यक्ष परिणाम हम देख रहे हैं कि समाज में राक्षसी प्रवृत्तियां हावी हो रही हैं। इस सत्य को जब सभी धर्माधिकारी अच्छे से समझ जायेंगे और तदनुसार आचरण करेंगे, तब सभी मन्दिर और धार्मिक प्रतिष्ठान गोपालन के लिए विवश होंगे। इसलिए जितने भी मठ-मन्दिर तथा हिन्दूधर्म के धार्मिक प्रतिष्ठान हैं, सबको यह निश्चय कर लेना चाहिये कि गाय के दूध-दही-घी और उन्हीं से बनी मिठाइयों का मन्दिर में भोग लगेगा, तो स्वाभाविक है कि उनकी अपनी गोशाला होगी।

अत्यन्त खेद का विषय है कि धन के लालच में और मांस खाने की चाह के कारण आज बेरहमी के साथ गोमाता की हत्या हो रही है। जिस प्रकार अपनी मां की हत्या करने वाले व्यक्ति को मृत्युदण्ड दिया जाता है, ठीक वैसे ही गोमाता की हत्या करने वालों को भी मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए।

कानून बना देने मात्र से गोवध कभी भी बन्द नहीं होगा। कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना पड़ेगा। किन्तु, वोटों के पीछे पागल होकर दौड़ने वाली सरकारों से कभी भी यह आशा नहीं की जा सकती कि वे ऐसा कर पाएंगी। यह तो तभी सम्भव होगा, जब सच्चे समाजसेवक सत्ता संभालेंगे। उससे पहले यह कलंक कभी भी दूर होने वाला नहीं है।

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