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• सहस्त्राब्दी पुरुषः श्री कल्याणसुन्दरम (man of million Shri KalyanSundaram)

man of million Shri KalyanSundaram
Sahastrabdi Purus shri kalyan sundaram

सहस्त्राब्दी पुरुषः श्री कल्याणसुन्दरम 

(man of million Shri KalyanSundaram)

एक हजार वर्ष के समय की अवधि को सहस्राब्दी कहा जाता है और एक ऐसा श्रेष्ठ व्यक्ति, जिसके समान वर्तमान सहस्राब्दी में अन्य कोई न हुआ हो, ‘सहस्राब्दी पुरुष’ कहलाता है।

श्री कल्याणसुन्दरम् ने तीस वर्ष तक एक पुस्तकालयाध्यक्ष (लाइब्रेरियन) के रूप में कार्य किया। इस बीच वे हर महीने अपना पूरा वेतन जरूरतमन्दों एवं असहायों की सहायता के लिए समर्पित करते रहे। अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए वे एक होटल में बैरा के रूप में कार्य करते थे। अवकाशप्राप्ति के समय उन्होंने अपनी पेंशन की सम्पूर्ण धनराशि (लगभग दस लाख रुपये) भी जरूरतमन्दों को समर्पित कर दी थी। श्री कल्याणसुन्दरम् अपनी पूरी कमाई को समाजसेवा के निमित्त खर्च करने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति हैं। उनकी इस अद्वितीय सेवा की कदरदानी के लिए अमेरिकी सरकार ने उन्हें ‘सहस्राब्दी पुरुष’ पुरस्कार से सम्मानित किया। इस पुरस्कार के एक अंश के रूप में उन्होंने तीस करोड़ रुपये प्राप्त किये और इस पूरी राशि को भी उन्होंने पहले की तरह जरूरतमन्दों के लिए समर्पित कर दिया।

दूसरों की सहायता करने के उनके इस मनोभाव से प्रभावित होकर जानेमाने सुपरस्टार फिल्म अभिनेता रजनीकान्त ने उन्हें अपने पिता के रूप में अंगीकार कर लिया और उसने भी अपना सारा जीवन समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया है।

श्री कल्याणसुन्दरम् पर हम सब भारतीयों को गर्व होना चाहिए। अमेरिकी सरकार ने तो उन्हें इतने बड़े सम्मान से नवाजा है, किन्तु हम भारतीय यह भी नहीं जानते कि ऐसा महान् व्यक्तित्व आज हमारे बीच मौजूद है। हमारे लिए यह कितनी लज्जा की बात है!

श्री कल्याणसुन्दरम् जी, हम सभी भारतीयों को आपके ऊपर बेहद नाज है, समाजसेवा के आपके उच्च मनोभावों को हम प्रणाम करते हैं और गर्व के साथ कहते हैं कि आप जैसा कोई व्यक्ति सिर्फ भारतवर्ष में ही होता है। यह भूमि आप जैसी विभूतियों की उत्पत्ति एवं लीला के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

वस्तुतः, त्याग के बिना जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमारे देश में एक से बढ़कर एक त्यागी-तपस्वी हुए हैं, जिनका सम्पूर्ण जीवन दूसरों की सेवा के लिए समर्पित रहा है। वे सदैव दूसरों के लिए जिये और दूसरों के लिए ही मरे हैं। त्याग के बल पर उन्होंने अपने जीवन में बड़ी-बड़ी ऊंचाइयां प्राप्त की हैं। इसके विपरीत, मान-सम्मान और धन-दौलत के पीछे अन्धे होकर दौड़ने वाले लोग सदैव पतन के मार्ग पर जाते हैं।

हमारे समस्त राजनेताओं, तथाकथित धर्मगुरुओं, फिल्मी कलाकारों, धनाढ्य व्यापारियों, क्रिकेटरों, पत्रकारों और हम सबके लिए तथा विशेष रूप से अन्यायी-अधर्मी चोरों, डकैतों, लुटेरों, ठगों, घूसखोरों, बेईमानों, माफियाओं और मिलावट आदि करने वालों के लिए सहस्राब्दी पुरुष श्री कल्याणसुन्दरम् का जीवन सत्प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय है। श्रीसुन्दरम् भी, यदि चाहते तो, अपने मासिक वेतन और पेंशन के बल पर बहुत ही सुख-सुविधापूर्ण जीवन जी सकते थे। त्यागपूर्ण जीवन जीकर ही वे इतना ऊंचे उठे। उस त्याग के फलस्वरूप आज वे कितनी कठिनाइयां झेल रहे होंगे, यह कल्पना से परे है और वह किसी घोर तपस्या से कम नहीं है।

हम सभी का यह पुनीत कर्तव्य है कि सहस्राब्दी पुरुष श्री कल्याणसुन्दरम् के आदर्श एवं त्यागपूर्ण जीवन से प्रेरणा लेकर स्वयं को परहित के लिए समर्पित करें। इसके साथ ही उनके जीवन के विषय में अधिक से अधिक लोगों को विस्तार से बताएं। हो सकता है, उनमें से कुछ सुपरस्टार रजनीकांत की तरह प्रभावित होकर समाजसेवा के लिए संकल्पित हो जाएं। इस युग की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है। वास्तव में, हमारा जीवन तभी सार्थक होता है, जब हम दूसरों के लिए जीते हैं।

आज का इन्सान एक पैसे का त्याग नहीं करना चाहता। त्याग को छोड़िये, वह तो बहुत दूर की बात है। उसके उल्टे, यहां पर चारों ओर लूट मची है। मंत्री और राजनेता आए दिन बड़े-बड़े घोटाले कर रहे हैं। कथित धर्मगुरु, योगगुरु और कथावाचक शिविरों के माध्यम से लोगों का इमोशनल ब्लैकमेलिंग करके उनसे भारी पैसा लूट रहे हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति, व्यापारी और फिल्मी हस्तियां अथाह पैसा होते हुए भी टैक्स की चोरी कर रहे हैं। पैसे की भूख इतनी बढ़ी है कि शान्त होने का नाम ही नहीं ले रही है। गरीब और असहाय लोगों के दुःख-दर्द दूर करने का विचार तो कभी इनके मन में आता ही नहीं।

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