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• गौमाता की सेवा व संरक्षण

Gausewa va Sanrakshan
गौमाता की सेवा व संरक्षण

आज के युग की परम आवश्यकता गौ वध का विरोध तथा गौ माता की सेवा व संरक्षण


या देवी सर्वभूतेषु गौ माता रूपेण संस्थितः।
नमस्तस्यै! नमस्तस्यै! नमस्तस्यै! नमो नमः।।

 हे माँ! भगवती जगत जननी जगदम्बा जी आप सभी लोकों, चर-अचर में व्याप्त हैं। आप ही गौ माता के रूप में अवतरण लेकर मानव का कल्याण कर रही हें। हम सभी तुच्छ मानव आपको बारम्बार प्रणाम करते हैं।

 आज इस कलयुग में असत्य का बोलबाला अपने पूरे शबाब पर है। मनुष्य मानवता को भुलाकर पशु बनता जा रहा है। अच्छे बुरे का ज्ञान भुला दिया है। बस एक ही रट हाय पैसा, शोहरत, ऐशो-आराम कहां से आये?इसके लिये वह कोई भी रास्ता तय करने को तैयार है, चाहे वह किसी को धोखा देना हो या किसी की चोरी करनी हो या किसी का कत्ल करना हो। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह पशुओं को भी नहीं छोड़ रहा है, यहाँ तक कि ‘‘गौ’’ जिसे हम गौमाता के नाम से पूजते थे, आज उसी को कुछ पैसों की खातिर उसके वृद्धावस्था में वध हेतु कसाई को बेंच देते हैं। जबकि वेदों पुराणों में भी गौ माता की महिमा गाई गई है। गौमाता को समस्त रिद्धि सिद्धि प्रदान करने वाली कामधेनु से सम्बोधित किया गया है, स्वयं वेद गाय को नमन करते हें।

 अध्न्ये! ते रूपाय नमः। रूपायाध्न्ये ते नमः।।
 (अथर्व शौन 10.10.1 पेम्प 16.107.1)

 हे अवध्य गौ! तेरे स्वरूप के लिए प्रणाम है। देवी के नामों में भी ‘गौमाता’ का उल्लेख हुआ है, गौ न केवल अदृष्ट रूप सौभाग्य संवर्धनकारिणी होने के कारण पूज्यनीय है। प्रत्युत उसके द्वारा प्रत्यक्ष भी हमारे महाकार्य सम्पन्न होते हैं जैसे कि हम किसी भी देवी देवता की पूजा में प्रसाद स्वरूप गाय का दूध, दही, घी आदि उपयोग करते हैं, अन्य किसी दूसरे पशु का नहीं। यज्ञ के समय भी देवताओं के पूजन एवं आहुति हेतु गौ माता के घृत आदि गव्य पदार्थों का उपयोग होता है। गौ माता का दूध, दही, घी, गोमय तथा गोमूत्र को शास्त्रों की विधि से तैयार कर सेवन किया जाय तो वह सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला है।

 ‘‘गोत्र’’ शब्द गौ से बना है जो हिन्दुओं के विभिन्न वंशों के परिचय के लिए इसका उपयोग करते हैं। पूजा की माला मंत्र जप करते समय गौमुख (कपडे़ की थैली) में रखकर ही मंत्र का जाप करते हैं, माता गंगा के उद्गम स्थल को भी गौमुख ही कहते हैं। ऋषिगण झुंड की झुंड गौएं रखते थे, यही इस ‘शब्द’ के व्यवहार का मूल है। उस समय लड़कियों का

प्रधान कार्य गौसेवा था इसलिए वे दुहिता कहलाती थीं। एक दंतकथा प्रचलित है। कहते हैं कि एक दिन भगवान शंकर ब्रम्हदेव के घर गये। पितामह ने उनका बडा आदर सत्कार किया एवं विदाई के समय प्रसन्न होकर सृृजनकर्ता ने बहुत सी गायें भेंट स्वरूप दीं, जिनके आगे स्वर्ण की संपदा भी तुच्छ थीं। उन्हें पाकर संहारकर्ता भगवान शंकर बड़े प्रसन्न हुये, तभी से उनका नाम ‘पशुपति’ पड़ा। महादेव ने अन्य शीघ्रगामी सवारियों का त्यागकर अपनी सवारी के लिए नन्दी नामक बैल का वरण किया।

 ‘‘गौ माता की सेवा’’ आज कोई नया शिगूफा नहीं, वरन अनादिकाल से चली आ रही धार्मिक आस्था तथा आज के युग में वैज्ञानिक आधार पर अनेकों प्रकार की बीमारियों से बचने की ढ़ाल है। हमारे वेद, पुराण, उपनिषद इस बात के साक्षी हैं कि जिन्हें हम अपना आदर्श कहते हैं जिन्हें हम भगवान राम और कृष्ण के रूप में पूजते हैं उन्होंने भी गौ माता की सेवा की है और गौमाता की सेवा का उपदेश समाज को दिया है। पुरातन काल में महाप्रतापी राजा दिलीप की पुत्र प्राप्ति हेतु गुरू वशिष्ट जी की आज्ञा से गौसेवा कर पुत्र प्राप्ति का उदाहरण बडे़ विस्तृत रूप से मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि गौमाता की सेवा व संरक्षण मानव जीवन के लिए कितना जरूरी है। पशुओं में गौमाता ही एक ऐसा पशु हैं जिसका दूध, घी, मूत्र, गोबर तो उपयोगी है ही, श्वांस भी अनेकों तरह के जहरीले जीवाणुओं को नष्ट करने में सामर्थवान है। जहां गौ माता का दूध, दही, घी, मानव शरीर को पौष्टिक एवं सुडौल बनाता हैं वहीं गोबर तथा गौ मूत्र मानव शरीर की अनेकों तरह की घातक बीमारियों को पूर्णतः नष्ट कर निरोगी बनाता है।

 हमारी गौमाता का वंश हमारे लिए आध्यात्मिक ऊर्जा (च्वेपजपअम म्दमतहल) का महत्वपूर्ण श्रोत है। हमारे यहां के परमाणु वैज्ञानिक डा0 गन्नम मूर्ति ने अपने द्वारा निर्मित यंत्र ’’यूनिवर्सल स्कैनर’’ से मनुष्यों, पशुओं, पेड-पौधों तथा वस्तुओं के आभामंडल को नापकर अपने शोधपत्र में बताया है कि सामान्य मनुष्य का आभा मंडल 2.5 मी., स्वदेशी गाय का 4.5 मी. से 6 मी., गौ दुग्ध का 12 मी., गाय के घी का 14 मी., गौमूत्र का लगभग 9 मी. तथा गोबर का 6 मी. होता है। उसने सिद्ध किया है कि ये सभी पदार्थ ग्रहण करने से मनुष्य का, सात्विक आभामडंल बढ़ जाता है।

 वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि गोबर व गौमूत्र में एन्टीबायोटिक, एन्टीसेप्टिक व एन्टीटोक्सिन तीनों गुण मिलते हैं। यह गौमूत्र न केवल मनुष्यों के शरीर के लिए उपयोगी है अपितु पशुओं तथा पक्षियों व फसलों के रोगों तक का निदान करता है। प्राचीनकाल में ऋषियों-मुनियों द्वारा पंचगव्य के रूप में गौमाता का दूध, दही, घी, गोबर तथा मूत्र ही उपयोग किया जाता था और आज भी वही प्रक्रिया चल रही है। साथ ही पूजन स्थल की शुद्धता हेतु लिपाई गौमाता के गोबर से ही की जाती थी, जो आज भी चल रही हैं। यह पंचगव्य न केवल मानव शरीर तथा मन, बुद्धि के विकारों को भी शुद्ध करता है।

 इस जगत में गौमाता के दूध, दही, घी, गोबर, तथा मूत्र जैसा कोई दूसरा पदार्थ नहीं है। इन सब अच्छाइयों एवं सच के बाद भी मानव कैसा हैवान बनता जा रहा है कि वह गौवध करने से नहीं चूकता है। बड़े शर्म की बात है कि हम अपने आपको हिन्दू कहते हैं और हमारे राष्ट्र में हिन्दुओं की बहुतायतता भी है तथा सरकारें भी हिन्दुओं की होते हुये भी हम गौमाता के वध को नहीं रोक सके हैं।

 दिल्ली विश्वविघालय के भौतिकी/खगोल भौतिकी के रीडर डा0 मदन मोहन बजाज तथा उनके सहयोगी डा0 इब्राहिम तथा डा0 विजयराज सिंह ने अपने शोध ग्रन्थ ‘‘बी.आई.एस. (बजाज-इब्राहिम-सिंह) थ्योरी आफ अर्थक्वेक्स’’ तथा ससस्थिेलोजिकल वेव्स इन्टरएक्शन मॉडल में सिद्ध किया है कि कत्लखानों में पशुओं के सामूहिक वध से जो पीड़ा लहरी (च्ंपद ॅंअमे) निकलती है उसकी दहलाने वाली शक्ति 1040 मेगावाट से अधिक होती है। उन्होंने मैथेमेडिकल मॅाडल मैक्स इन्टर ऐक्सन आफ आइंस्टीम पेन बेन्स (ई.पी.डब्लू.) तथा फिजिक्स एक्सपेरिमेन्ट्स के आधार पर सिद्ध किया है कि भारत में आये भूकम्पों के पीछे कारण भारत में स्थापित बडे़-बडे़ कत्लखानों में निरीह पशुओं की हत्या के समय वायुमंडल में फैली पीड़ा लहरें हैं।

दर्दनाक तरीके से गौ माता की हत्या

आज देश में हजारों कत्लखाने हें जिनमें 10 बड़े अधुनिक मशीनों युक्त कत्लखाने हैं जिनमें प्रतिदिन कई लाख पशुओं को काटते हें। इनमें पचासों हजार गौ वंश प्रतिदिन कटता है जिनका हजारों टन मांस विशेष एयर कंडीशन वाहनों द्वारा विदेशों में भेजा जाता है। इन कत्लखानों में बडे दर्दनाक तरीके से गौमाता को कत्ल किया जाता है, क्रूरता की हद पार करते हैं क्योंकि जिन्दा पशु का चमड़ा पतला निकलता है और ज्यादा दामों में बिकता है इसलिए किसी पशु को तीन या चार दिन बगैर खाना-पानी के रखते हैं। इसके बाद मशीन में खड़ाकर आगे व पीछे के पैर बांध दिये जाते है तथा पशु के ऊपर 200 डिग्री सेन्टीग्रेट का गरम पानी कुछ मिनट डालकर आधी गर्दन काटते हें साथ ही चमड़ा उतार लेते है। मांस काटकर गाड़ियों में भरकर निर्यात के लिए भेज दिया जाता है। इस क्रूरता के साथ पशुओं का वध होता है। यहां मैं वह सब नहीं लिख पा रहा जो कत्लखानों मे होता है। इसमें अच्छे-अच्छे पशुओं के भी पैर तोडकर अपाहिज बनाकर कत्ल कर देते है। यही क्रिया अगर लम्बे समय तक चलती रही तो अपने देश के गौ वंश को देखने के लिए हम तरस जायेंगे। जो गौ वंश आध्यात्मिक एवं भौतिक रूप से मानव का परम हितैषी हो, उसे ही हम नष्ट होते देख रहे हें और हम कुछ नहीं कर पा रहे है, जबकि देश के संविधान में भी गौ वंश के वध को प्रतिबन्धित किया गया है। आज जरूरत है कि देश का प्रत्येक नागरिक जागरूक हो और गौ हत्या के विरोध में उठा खड़ा हो, शासन प्रशासन को जागरूक करें जिससे गौ वंश की हत्या को रोका जा सके।

अतः मेरा आप सभी लोगों से अनुरोध है कि हम सभी इस ’’संकल्प शक्ति’’ साप्ताहिक समाचार के माध्यम से समाज के बुद्धिजीवी वर्ग व प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया तथा शासन-प्रशासन से अनुरोध करते हैं कि वे जाग्रत हों और इस जद्यन्य कार्य को रोकने में मदद करें।
- गुरूसेवक बृजपाल सिंह चौहान

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