घोर संकट में है जीवनदायिनी गोमाता
घोर संकट में है जीवनदायिनी गोमाता |
घोर संकट में है जीवनदायिनी गोमाता
भारतवर्ष एक धर्मपरायण देश है। यहां पर विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा तो होती ही है, साथ पीपल, आमलक व तुलसी आदि पेड़-पौधों को भी पूजा जाता है। और तो और, पशु-पक्षियों तक की पूजा भी की जाती है। श्रावणशुक्ल पंचमी (नागपंचमी) के दिन नाग की पूजा और कार्तिक शुक्ल अष्टमी (गोपाष्टमी) को गोवंश की पूजा होती है।
वास्तव में, ऐसा करना कोई अन्धविश्वास नहीं है। इन सबकी पूजा इनकी उपयोगिता के कारण हमारे ऊपर हुये इनके उपकारों के लिए कृतज्ञता का प्रकटीकरण है। ‘कृते च प्रतिकर्तव्यं एष धर्मः सनातनः,’ अर्थात् जिसने हमारे ऊपर किन्चितमात्र भी उपकार किया है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहना, यही सनातन धर्म है।
हमारे ऊपर गोमाता के उपकार
हमारे ऊपर गाय के असंख्य उपकार हैं। हम कभी भी उसका बदला नहीं चुका सकते। गाय का दूध अन्य सभी पशुओं के दूध से श्रेष्ठ है। वह बल एवं बुद्धिवर्द्धक है। देखा जाय, तो गाय ने ही मान व बुद्धि की रक्षा की है। आयुर्वेद के अनुसार, गाय के पंचगव्य (दूध, घी, दही, गोमय एवं गोमूत्र) के सेवन से हमारा भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास होता है।गाय के गोबर की लिपाई से घर स्वच्छ एवं पवित्र होता है। गोमूत्र अनेक रोगों की अचूक दवा है। इसके गोबर एवं मूत्र से बनी कम्पोस्ट खाद, खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। गाय के निःश्वास से अनेक रोगों के कीटाणु नष्ट होते हैं। जिस घर में गाय का वास होता है, वहां पर किसी भी प्रकार का वास्तुदोष नहीं रहता। मरणोपरान्त भी गाय की खाल और हड्डियों का उपयोग होता है।
गोमाता का धार्मिक महत्त्व
गाय धर्म का प्रतीक है। उसके सींग में ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रतिष्ठित हैं, अर्थात् त्रिदेव उससे भिन्न नहीं हैं
शृंगमूले स्थितो ब्रह्मा, शृंगमध्ये तु केशवः।
शृंगाग्रे शंकर विद्यात्, त्रयो देवाः प्रतिष्ठिताः।।
माता भगवती की सृष्टि में गाय के जैसा कोई कृतज्ञ प्राणी नहीं है। प्रेम स्वीकार करने वाला तथा उपकार का कई गुना उत्तर देने वाला ऐसा कोई अन्य प्राणी नहीं है। अड़सठ करोड़ तीर्थ और तैंतीस करोड़ देवताओं का चलता-फिरता विग्रह है गाय! भगवान् की पूजा में गो-पदार्थ होने से भगवान् सन्तुष्ट होते हैं। गाय मात्र मानव समाज की ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व की, समस्त प्राणियों की माता है- ‘मातरः सर्वभूतानां गावः’।देखने में गाय निःसन्देह एक चौपाया लगता है, किन्तु वह साक्षात् भगवान् है। ऐसा हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं। इसीलिए, भगवत्प्राप्ति के लिए गोसेवा भी एक माध्यम है। किन्तु, गोसेवा के द्वारा तब तक भगवत्प्राप्ति सम्भव नहीं है, जब तक गाय के प्रति पशुबुद्धि बनी है। वास्तव में, गोसेवा का लाभ तभी मिलेगा, जब उसमें भगवत्बुद्धि करके उसकी सेवा की जाएगी।
गाय का दर्शन करना, उसे प्रणाम करना, उसका गोबर उठाना, सानी करना, तथा खुजोरा करना आदि भगवत्प्राप्ति के सरल साधन हैं। हम सबकी इष्ट माता भगवती दुर्गा माँ हैं। भगवान् श्री कृष्ण भी वही हैं। उनकी इष्ट गोमाता हैं। इसलिए, गाय अति इष्ट है। इसीलिए, ‘सत्यं परं धीमहि’ कहकर गाय का ध्यान करने का विधान है।
आज जितनी भी भयंकर समस्याएं आ रही हैं, उन सबका मूल कारण है, रजोगुण की वृद्धि। सात्त्विकता कहीं दिखाई नहीं पड़ती। माता भगवती ने अपनी सृष्टि में सर्वाधिक सत्त्वगुण गाय के भीतर प्रतिष्ठित किया है। वस्तुतः, गाय सात्त्विक का आधार है। इसीलिए, उसकी सेवा-पूजा करने तथा गव्य पदार्थों के सेवन से मनुष्य में सात्विक विचार और सात्त्विकता आती है।
इस प्रकार, गाय की सेवा और भक्ति से सारी समस्याओं का समाधान सम्भव है। बिना इसके विश्वमंगल सम्भव नहीं है। जिस दिन गाय का एक बूंद रक्त धरती पर नहीं गिरेगा, उस दिन सारी समस्याओं का उन्मूलन स्वतः हो जाएगा।
No comments