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• युवा शक्ति का दुरुपयोग न हो (don’t misuse of youth power)

युवा शक्ति का दुरुपयोग न हो!
youth power future of country

युवा शक्ति का दुरुपयोग न हो! 

(don’t misuse of youth power)

प्राकृतिक आधार पर विभाजित किसी विशिष्ट भूभाग को देश कहते हैं, किन्तु वास्तविक देश वहां पर बसने वाला जनसमुदाय होता है। इसीलिए किसी देश की शक्ति उसके मानव उपादान में होती है। कोई देश तभी शक्तिशाली होगा, जब वहां के पुरुष और महिलाएं चेतनावान्, चरित्रवान्, सामर्थ्यवान्, कर्मवान् एवं ईमानदार होंगे। भौतिकरूप से वह कितना भी विकसित हो, उसके लोगों को नैतिक रूप से मजबूत होना ही चाहिए। उसका राजनैतिक तंत्र कितना भी पूर्ण क्यों न हो, वह देश बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सकता, जब तक उसकी जनता अच्छी न हो।

युवाशक्ति का महत्त्व

आज के युवा कल का भारत हैं। वे राष्ट्र की मेरुदण्ड हैं। हमारे देश में 60 करोड़ की आबादी 25 वर्ष से कम आयु के लोगों की है और लगभग 70 प्रतिशत आबादी 40 वर्ष से कम आयु वालों की है। राष्ट्रीय युवा नीति के अनुसार, 40 प्रतिशत आबादी हमारे यहां 13-35 वर्ष आयुवर्ग की है। वर्ष 2012 के एक स्वतंत्र अध्ययन में अन्तरराष्ट्रीय श्रम ने पाया था कि सम्पूर्ण विश्व में भारत में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां पर कुल जनसंख्या के 66 प्रतिशत 35 वर्ष से कम आयु के लोग हैं। यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में असाधारण है। यदि इसका सदुपयोग नहीं किया गया, तो इससे जनसांख्यिकीय संकट उत्पन्न हो जाएगा। तब युवा लोग सही रास्ते पर न रहकर, भटक जाएंगे।

हमारे देश की माध्यिक आयु 25 वर्ष है तथा हमारे केबिनेट मंत्रियों की औसत आयु 65 वर्ष है। इस प्रकार इन दोनों में 40 वर्ष का बड़ा अन्तराल विद्यमान है। इसके फलस्वरूप विचारों में भी अन्तराल होना स्वाभाविक है। इतिहास बताता है कि जब भी इनमें इतना बड़ा अन्तराल होता है और अधिकतर आबादी युवाओं की होती है, तो देश में राजनैतिक आन्दोलन होते हैं। यदि आप भारत के इतिहास को देखें, तो स्पष्ट होगा कि युवा लोग विशाल परिवर्तन कर सकते हैं। जब उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ किया था, तो उस समय हमारे लगभग सभी स्वतंत्रता सेनानी युवा थे।

किन्तु, आज के युवाओं में वह उत्साह कहां है? उनमें जोश के स्थान पर भारी कुण्ठा है। इसका कारण है हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के रूप में उन पर अनावश्यक बोझ, कार्यनिपुणता की कमी तथा नौकरी मिलने से लेकर उसके निष्पादन तक विकट दबाव।

युवाओं की समस्याएं

आज के युवा की सबसे पहली चिन्ता शिक्षा है। उसे बेहतर शिक्षा चाहिए, जिससे रोजगार मिले। वह चाहता है कि निपुणता-आधारित शिक्षा तथा नौकरी स्थापन उच्च शिक्षा के अंग होने चाहिएं। अतः जीविका-अभिमुख पाठ्यक्रमों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।

आजकल युवा बेरोजगारी बढ़त की ओर है। विश्व विकास रिपोर्ट 2013 के अनुसार, 15-24 वर्ष आयु के बीच के 9 प्रतिशत युवक और 11 प्रतिशत युवतियां बेरोजगार हैं। युवा बेराजगारी निरक्षरों की तुलना में शिक्षितों में अधिक है। जहां तक रोजगार मिलने का प्रश्न है, युवा स्नातक सबसे अधिक पीड़ित हैं। निरक्षर लोग तो कोई भी कार्य कर लेते हैं, किन्तु शिक्षित तो उसी कार्य की तलाश में रहते हैं, जिसकी उन्होंने शिक्षा पाई है।

आज का युवा किसी दूसरी बात से ज्यादा भ्रष्टाचार के मुद्दे से चिन्तित है। यही कारण है कि अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान में सबसे अधिक युवा ही थे। रतन टाटा ने एक बार कहा था, ‘‘आज के युवाओं को भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए लड़ना ही होगा। उन्हें भारत के नागरिकों को संगठित करना होगा कि भारत प्रथम है, बजाय साम्प्रदायिक या भौगोलिक दलबन्दी के। यद्यति भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ना हर नागरिक की जिम्मेदारी है, किन्तु युवा लोग अपने स्वभाव एवं ऊर्जा के कारण इस आन्दोलन में अधिक भाग ले सकते हैं। युवाओं को अपने नैतिक मूल्यों पर अडिग रहना चाहिए तथा उनसे कोई समझौता नहीं करना चाहिए।’’

युवाओं का भटकाव

बड़े दुःख की बात है कि अब तक की कोई भी सरकार युवाओं की इन समस्याओं का कोई हल नहीं निकाल पाई है। इससे उनमें घोर असन्तोष, कुण्ठा एवं अशान्ति व्याप्त है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यही कारण है कि बहुत से युवा विभिन्न प्रकार के नशों की गिरफ्त में आ चुके हैं। कुछ इधर-उधर मटरगश्ती करते हैं, अश्लील गाने सुनते हैं तथा कामुक टी.वी. सीरियल और सिनेमा देखते हैं। यह समय और शक्ति दोनों की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

अनेक राजनेता युवाओं को अच्छे राजनैतिक कार्यों में लगाने की बजाय उनका शोषण करते हैं। चुनावों के समय वे उनका प्रयोग अपने प्रचार के लिए या अन्य कार्यों में करते हैं। जब उन्हें कोई रैली निकालनी होती है, धरना-प्रदर्शन करना होता है या तोडफोड़ करनी होती है, तब भी वे उन्हीं को माध्यम बनाते हैं।

कुछ बेरोजगार युवा चोरी-डकैती, अपहरण और लूटपाट जैसी अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। बहुत से उग्रवादी एवं नक्सलवादी जैसे राष्ट्रविरोधी संगठनों में शामिल हो गए हैं। कुल मिलाकर यह सब कुछ युवाशक्ति का भारी दुरुपयोग है और अत्यधिक चिन्ता का विषय है। यदि समय रहते इसे रोका न गया, तो देश का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।

अन्तरराष्ट्रीय युवावर्ष

कदाचित् बहुत कम लोगों को मालूम है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1985 को ‘अन्तर्रराष्ट्रीय युवावर्ष’ घोषित किया था। इससे स्पष्ट होता है कि अन्तर्रराष्ट्रीय समुदाय भी युवाशक्ति को बहुत अधिक महत्त्व देता है। भारत सरकार ने इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके घोषणा की थी कि भारतवर्ष में यह युवावर्ष 12 जनवरी से प्रारम्भ होगा, जो स्वामी विवेकानन्द की जन्मतिथि है।

अतः इसका उद्घाटन करने के लिए उस दिन विज्ञानभवन, नई दिल्ली में एक सभा का आयोजन किया गया था। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने सम्बोधित किया था। उन्हें भारतीय युवाओं के अनुसरण करने के लिए स्वामी विवेकानन्द के अतिरिक्त और कोई श्रेष्ठ व्यक्तित्व नहीं मिला था, क्योंकि उनमें युवाओं के लिए विज्ञानवाद एवं क्रियात्मक भाव दोनों ही सर्वश्रेष्ठ थे।

वास्तव में, स्वामी विवेकानन्द एक उच्च कोटि के सन्त थे। उनका मुख्य सरोकार मानव था, विशेष रूप से दुःखी मानव। निर्धन एवं अभागे लोग उनके भगवान् थे। इसीलिए मानवजाति की सेवा के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। उनके लिए यही सर्वश्रेष्ठ धर्म था।

स्वामी जी ने त्याग एवं सेवा को भारत का राष्ट्रीय आदर्श बतलाया था। इन आदर्शों से प्रेरित होकर, जनता के लिए कार्य करने हेतु वे एक लाख युवक एवं युवतियां चाहते थे। अतः उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण के लिए युवाओं का आवाहन किया था।

भारतवर्ष में एक लम्बे समय तक जनसमूह की उपेक्षा हुई थी, जो एक राष्ट्रीय अपराध था। इसके लिए उसे महंगी कीमत चुकानी पड़ी थी और बार-बार वह विदेशी आक्रमण का शिकार हुआ था। इस अपराध का प्रायश्चित करने के लिए युवाओं को एक शक्तिशाली बल के रूप में संगठित होकर जनसामान्य को उस दलदल से निकालने के लिए कार्य करना चाहिए, जिसमें वे पड़े हुए थे। गरीबी, अज्ञान और जातिपीड़न ने उन्हें जड़बुद्धि बना दिया था।
अस्तु, भारत सरकार ने युवाओं के लिए स्वामी विवेकानन्द को एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। किन्तु, राजनैतिक उठा-पटक और जोड़-तोड़ के चक्कर में उसने यह भुला दिया कि पूरे वर्ष 1985 के दौरान उसे युवाओं के लिए ऐसे सृजनात्मक कार्यक्रम आयोजित करने चाहिएं थे, जिनके द्वारा उनके भीतर देश के अभावग्रस्त लोगों के दुःख-दर्द दूर करने की भावना उत्पन्न होती और वे राष्ट्र के नवनिर्माण में जुट जाते। साथ ही प्रतिवर्ष 12 जनवरी को ‘युवादिवस’ के रूप में मनाया जाना चाहिये था।

खेद का विषय है कि हमारे देश के कर्णधार स्वयं सन्मार्ग से भटके हुए हैं। अतः वे दूसरों का मार्गदर्शन कैसे कर सकते हैं? वास्तव में, हमारे देश की राजनीति सत्ता के इर्दगिर्द घूमती है कि उसे कैसे प्राप्त किया जाय और येन केन प्रकारेण यदि सत्ता मिल गई है, तो उसे अपने हाथों में किस प्रकार बनाए रखा जाय। यही कारण है कि राजनेताओं का ध्यान जनता के दुःख-दर्द की ओर कभी नहीं जाता। वे नितान्त संवेदनहीन हो चुके हैं। वे कभी देश का उत्थान कर पाएंगे, यह आशा करना व्यर्थ है।

एक ऋषि की पीड़ा

पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के संस्थापक-संचालक धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, जिनका रोम-रोम मानवता की सेवा, धर्म एवं राष्ट्ररक्षा को समर्पित है, देश के इस परिदृश्य तथा युवाओं की वर्तमान स्थिति को देखकर अत्यन्त व्यथित हैं। आपके अनुसार, देश के ऊपर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। जब देश ही सुरक्षित नहीं होगा, तब धर्म और मानवता की रक्षा कैसे हो सकेगी? अतः हमारे लिए राष्ट्ररक्षा सर्वोपरि है।

इसी लक्ष्य को लेकर आपश्री ने भारतीय शक्ति चेतना पार्टी नामक एक राजनैतिक दल का गठन किया है, जो वर्तमान बीमार एवं बेलगाम राजनीति को लगाम लगाएगा। चूंकि युवा राष्ट्र की संजीवनी शक्ति होती है, अतः आपने विभिन्न राज्यों में इस पार्टी के युवा मोर्चे का गठन भी किया है। इसमें 18-35 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं को सम्मिलित किया है।

महाराजश्री के विचार

इन युवाओं में नई शक्ति का संचार करने के लिए परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् ने वर्ष 2014 में 09 जून से 13 जून की अवधि में युवा सम्मेलन का आयोजन किया था। उसमें दिये गए आपके दिव्य उद्बोधन का सार संक्षेप निम्नवत् हैः

जिस राष्ट्र के युवा सजग हों, वह कभी भी पतन के मार्ग पर नहीं जा सकता। युवावर्ग जब चेतनावान्, संस्कारवान् एवं चरित्रवान् होगा, स्थायी परिवर्तन तभी आएगा। अतः मैं आपको सिद्धसाधक बनाने और कर्म का पाठ पढ़ाने आया हूँ। मैं समाज को परिवर्तित करने आया हूँ और इस परिवर्तन को दुनिया की कोई शक्ति रोक नहीं पाएगी।
सदैव नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान् जीवन जिओ। समाज को जगाए बिना अनीति-अन्याय-अधर्म को दूर नहीं किया जा सकता। हमेशा सत्कर्म करो और विषय-विकारों से दूर रहो। आलस्य और अकर्मण्यता को त्यागकर कर्मवान् बनो तथा अभावग्रस्त एवं बेसहारा लोगों का सहारा बनो।

युवाओं में जोश बहुत होता है, किन्तु उसमें उनका होश लुप्त होजाता है। अतः धैर्यवान् बनो, विनम्र बनो और पुरुषार्थी बनो। विनम्र रहोगे, तभी आप समाज को अपने साथ जोड़ सकते हो। बुजुर्गों का सदैव आदर करो, उनके अनुभव से कुछ सीखो और उनके मार्गदर्शन में कार्य करो। एकता में बहुत शक्ति होती है। अतः आप लोगों को संगठित होना चाहिए।

जातीयता और छुआछूत से ऊपर उठकर अपने गांव में गरीब लोगों के साथ बैठो, उनकी समस्याओं को सुनो और उनकी सहायता करो। अपने गांव के मार्गदर्शक बनो, समाजसेवक बनो तथा राष्ट्ररक्षक एवं धर्मयोद्धा बनो। राजनीति हमारे लिए सत्तासुख भोगने के लिए नहीं, बल्कि समाजसेवा के लिए होगी। जहां तक मेरा प्रश्न है, मैंने बार-बार कहा है कि अन्य धर्मगुरुओं की तरह मुझे कोई चुनाव नहीं लड़ना है। किन्तु, राजनीति का मार्गदर्शन करना मेरा धर्म और कर्तव्य है, जैसा कि युग-युगान्तर से होता आया है।

इस सबसे स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् की अहैतुकी कृपा से पतन के मार्ग पर जाते हुए इस देश का भाग्य परम सौभाग्य में बदलने वाला है। युवाशक्ति का अब कभी भी दुरुपयोग नहीं हो सकेगा। समुचित मार्गदर्शन के अभाव में वे कुछ भी कर पाने में असमर्थ थे। किन्तु, गुरुवरश्री के दिव्य मार्गदर्शन में चलकर अब वे युग परिवर्तन करने में अहम भूमिका निभाएंगे और आने वाला समय युवाओं का ही होगा। वास्तव में, युवा राष्ट्र की संजीवनी शक्ति है।

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