Header Ads

• दुनिया का अन्त end of the world

दुनिया का अन्त end of the world


दुनिया का अन्त end of the world

माया सभ्यता के ‘लौंग काउण्ट’ मायन कैलेण्डर के अनुसार, यह पृथ्वी 21 दिसम्बर 2012 को पूर्णतया ध्वस्त हो जाएगी। इसके साथ ही इस पर विद्यमान जीव-जन्तु, वनस्पति, पर्वत, नदियां और अन्य अस्तित्व सभी नष्ट

हो जाएंगे। यही कारण है कि मायन लोगों ने 21 दिसम्बर 2012 से आगे का कैलेण्डर भी छापने का कष्ट नहीं किया है। इससे स्पष्ट है कि ये लोग इस भविष्यवाणी के प्रति कितने विश्वस्त हैं ! माया सभ्यता के लोग दक्षिणी मैक्सिको, ग्वाटेमाला तथा अलसल्वाडोर आदि देशों में रहते हैं।

मायन लोगों ने इस सम्बन्ध में तीन सम्भावनाएं व्यक्त की हैं:

1. कोई अज्ञात रहस्यमय ग्रह अपने पथ से विचलित होकर पृथ्वी के परिक्रमा पथ में आएगा और उससे टकरा जाएगा। फलस्वरूप, पृथ्वी पर विद्यमान समस्त जीवन उसकी सतह से उछलकर अन्तरिक्ष में पहुंच जाएगा और नष्ट हो जाएगा।

2. गुरुत्व का विस्फोट होगा, जो पृथ्वी को आकाशगंगा के केन्द्र पर घसीट ले जाएगा। वहां पर उसे दूसरे ग्रहों के द्वारा अथवा सम्भवतया एक अति विशालकाय ‘ब्लैक होल’ के द्वारा लील लिया जाएगा।

3. कोई उल्का पृथ्वी से टकराएगा, जिससे समवर्ती विशालकाय सुनामी उत्पन्न होगी। इस टक्कर से हिरोशिमा पर बम गिरने जैसा दृश्य उत्पन्न हो जाएगा।

इस भविष्यवाणी के आलोचकों ने इसे कोरी हास्यास्पद बकवास बताया है। उनके अनुसार, इस प्रकार की भविष्यवाणियां कुछ वर्षों के अन्तराल पर पिछले सैकड़ों सालों से की जाती रही हैं। कन्नड़ भाषा के एक साप्ताहिक पत्र ने मई 1999 में पृथ्वी पर सर्वनाश की भविष्यवाणी की थी, जिसमें कहा गया था कि लोग सन् 2000 को नहीं देख पाएंगे। इसके अनुसार, सूर्य रुक जाएगा, पृथ्वी के टुकड़े होकर बिखर जाएंगे और समुद्र पृथ्वी के थल भाग कोढक लेंगे। भयंकर भूकम्प आएगा और ज्वालामुखी फटेंगे। ऐसा सब कुछ 8 मई 1999 के दिन होना बताया गया था। इससे पूर्व, ऑस्ट्रिया के डॉ. फाल्वी ने 13 नवम्बर 1899 को प्रलय की भविष्यवाणी की थी। इन्हीं दिनों लन्दन की रॉयल ऐस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के वैज्ञानिक गोरे ने भी प्रलय के सन्निकट होने की भविष्यवाणी की थी। अगली भविष्यवाणी 17 से 20 दिसम्बर 1999 के मध्य सर्वनाश की थी। तदुपरान्त, 1 अगस्त 1943 को दोपहर 12 बजकर 44 मिनट पर सर्वनाश होने का दावा किया गया था। इसके बाद इटली के एक भविष्यवक्ता ने 14 जुलाई 1960 को प्रलय की चेतावनी दी थी। तत्पश्चात्, 1968 में इकारस नाम के एक क्षुद्र ग्रह के पृथ्वी से टकराने के कारण सर्वनाश होना बताया गया था। फिर, 1982 और 1984 में परमाणु हथियारों द्वारा लड़े जाने वाले तृतीय विश्वयुद्ध के कारण पृथ्वी का सर्वनाश होने की भविष्यवाणी की गई थी। इसी प्रकार, सन् 2000 से 2026 तक अवश्यम्भावी प्रलय के बारे में अनेकों भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं।

उल्लेखनीय है कि गत लगभग सौ सालों में की गईं ये सभी भविष्यवाणियां कपोल कल्पित सिद्ध हुई हैं। वास्तव में, इस प्रकार के शगूफे कुछ पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा अपने आपको मीडिया में स्थापित करने, अपने अंकों की प्रसार संख्या बढ़ाने तथा धन कमाने हेतु छोड़े जाते हैं। इस 21 दिसम्बर 2012 की प्रलय की भविष्यवाणी को लेकर, एक सौ करोड़ रुपए की लागत से ‘2012’ नामक एक फिल्म का निर्माण भी हो चुका है। इसके निर्माता ने इससे हजारों करोड़ रुपए कमा लिये होंगे। अपने निजी हितसाधन के लिए इस प्रकार की डरावनी भविष्यवाणियां करना जनता के प्रति जघन्य अपराध है।

अन्तरिक्ष में असंख्य ग्रह-उपग्रह करोड़ों-अरबों सालों से अपने-अपने परिक्रमा पथ पर बड़े व्यवस्थित ढंग से घूम रहे हैं। फिर भी, रात्रि के समय आकाश में आपने तारों को परस्पर टकराते हुए देखा होगा। हमारी पृथ्वी भी किसी दिन इसी प्रकार किसी ग्रह-उपग्रह से टकराकर नष्ट हो सकती है। इस सम्भावना से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता। किन्तु, इससे सम्बन्धित भविष्यवाणी से क्या लाभ है ? यह समझ में नहीं आता। यदि ऐसी प्रलय कभी होती भी है, तो उसे रोकने की या उससे बचने की सामर्थ्य मनुष्य में नहीं है। और, न ही उसके बाद कोई यह बताने वाला शेष बचेगा कि यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई।

भविष्य में क्या होने वाला है, यह बताने की क्षमता, वास्तव में, भगवान् के अतिरिक्त किसी भी मनुष्य में नहीं है। उन्हीं में यह सामर्थ्य भी है कि, यदि चाहें तो, वे किसी भी प्राकृतिक घटना को कम कर सकते हैं अथवा उसे पूर्ण रूप से टाल भी सकते हैं। इसलिये, बिना समय गवांए, हमें इस कलियुग के अवतार भगवान् कल्कि को खोजकर उनकी शरण में जाना चाहिये।

दुनिया का अन्त ?
विभिन्न युगों में, अनेक दिव्य आत्माएं इस धरती पर आईं और अपना कार्य करके चली गईं। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम आए। उन्होंने समाज को मर्यादा का पाठ पढ़ाया, रावण सहित अनेक राक्षसों का संहार किया और रामराज्य की स्थापना करने के बाद चले गए, किन्तु समाज उन्हें नहीं पहचान सका। आंखें तब खुलीं, जब वे प्रकृति में विलीन हो चुके थे।

इसी प्रकार, द्वापर में लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण आए। उन्होंने भी कंस सहित अनेक राक्षसों का संहार किया, सत्यधर्म की स्थापना की और श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भक्ति, ज्ञान व कर्मयोग का सन्देश दिया। उन्होंने यह भी बताया कि वे ही स्वयं परब्रह्म हैं, यहां तक कि उन्होंने अपना विराट् स्वरूप भी दिखाया। फिर भी, लोग उन्हें एक सामान्य मानव ही समझते रहे। उनके परमधाम जाने के उपरान्त ही लोग समझ पाए कि वे तो एक युगपुरुष थे। इस प्रकार, एक बार फिर भूल हो चुकी थी, जिसका कोई उपचार नहीं था। समाज इस सोच में रहा कि कहां राम की शक्ति व पराक्रम तथा मर्यादा का पाठ और कहां एक दम भिन्न रूप में श्रीकृष्ण का प्रेम व कर्म का पाठ ! उन्होंने उन्हें अर्जुन के सारथी और पाण्डवों के मित्र तक ही सीमित कर दिया, तथा एक सामान्य राजा ही समझे। उनके जाने के बाद समाज ने उनके अनेकों सुन्दर-सुन्दर मन्दिर बनवाए, प्रतिदिन आरती की, आँसू बहाये, परन्तु उनकी सशरीर नजदीकता के क्षण नहीं प्राप्त हो सके। रह गया, सिर्फ उनका गुणगान, जो आज भी समाज अपनी-अपनी तरह से कर रहा है।

एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है। इस कलियुग के अवतार, भगवान् कल्कि भी बहुत पहले सन् 1960 में भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश प्रान्त में अवतरित हो चुके हैं और उन्होंने युग परिवर्तन का अपना कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है। किन्तु, वे कौन हैं और कहां पर हैं, यह हमें ज्ञात नहीं है। निश्चय ही पूर्व के अवतारों की तरह यह भी चीख-चीखकर अपने विषय में स्पष्ट रूप से बता रहा होगा कि वह कौन है। परन्तु, समाज एक बार फिर गलती दोहरा रहा है। वह तो उन्हीं चिन्तनों में भटक रहा है कि यह अवतार भी भगवान् श्रीराम एवं भगवान् श्रीकृष्ण जैसा ही होना चाहिये तथा उसकी कार्यशैली भी उन्हीं के जैसी ही होनी चाहिये। परन्तु, अगर उन दोनों अवतारों के कार्य ही एक-दूसरे से नहीं मिल सके, तो यह कैसे सम्भव है कि इस अवतार के कार्य, रहन-सहन एवं क्रिया-कलाप पहले के अवतारों से मेल खाएंगे ? इसलिये, हमें हर हालत में भगवान् कल्कि को खोजना है।

हमें अपने आसपास ऐसे महापुरुष की खोज करनी चाहिये, जिससे उपर्युक्त भविष्यवाणियां मेल खाती हों। और, इस प्रकार अगर हम भगवान् कल्कि तक पहुंच सके, तो ऐसे युगपुरुष के पावन चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित करके हमें निश्चिन्त हो जाना चाहिये, क्योंकि वे ही हमारे योगक्षेम की रक्षा कर सकते हैं। अगर आप उन तक पहुंच सके, तो हमारे ब्लॉक के फीडबैक के माध्यम से हमें भी इसकी जानकारी अवश्य दें, जिससे हम भी उनके दर्शनों का लाभ प्राप्त करके अपने जीवन को धन्य बना सकें।

No comments

Theme images by Veni. Powered by Blogger.