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गोवंश पर संकट (Cows in Problems)

गोवंश पर संकट (Cows in Problems)

गोवंश पर संकट (Cows in Problems)

आदिकाल से ही गोपालन भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। गाय हमारी ही नहीं, सम्पूर्ण मानव समाज की माता है, सारे विश्व की माता है- ऐसा जानकर लोग उसकी सेवा-पूजा करते हैं। किन्तु, यह कलिकाल अब अर्थप्रधान हो गया है। इस कारण, गाय को भी अर्थिक दृष्टि से देखा जाने लगा है। कृषि का मशीनीकरण गोवंश के लिए सबसे अधिक घातक सिद्ध हुआ है। सन् 1990 के दशक तक हमारे देश के प्रायः हर किसान के घर में चार-छः बैल और गाय

बंधी हुई दिखाई दिया करती थीं। हल हो या बैलगाड़ी, खेती से सम्बन्धित हर कार्य बैल के माध्यम से ही किया जाता था। इन्हीं के गोबर की खाद खेतों में डाली जाती थी। किन्तु, धीरे-धीरे हालत यह हो गई कि अब किसानों के यहां गाय-बैलों के स्थान पर ट्रैक्टर खड़ा नजर आता है। ट्रैक्टर और रासायनिक खाद ने गोवंश को किसान के लिए अनुपयोगी सिद्ध कर दिया है। दूसरी ओर, भारतवर्ष की अधर्मी सरकार की तुष्टिकरण की नीति के कारण गोहत्या बन्द नहीं हो पा रही है। यदि यही हाल रहा, तो जल्दी ही गोवंश विलोपन के कगार पर पहुंच जाएगा।

हमारा धार्मिक इतिहास बताता है कि धर्मधुरन्धर सम्राट् दिलीप ने गोरक्षा के लिए अपना शरीर दे दिया था। ऐसे धर्मपरायण देश में गोवंश की हत्या होना बड़ी शर्म की बात है। बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ता है कि धर्मपरायण हमारा देश आज विश्वभर के मांसविक्रेता देशों में पहले नम्बर पर है। यहां पर गोवध के लिए यान्त्रिक कत्लखाने खुल गये हैं। फलस्वरूप, 75 प्रतिशत गोवंश नष्ट हो चुका है। हमें याद रखना चाहिये कि जब गाय नहीं रहेगी, तो सृष्टि भी नहीं रहेगी।

हमारे धर्मग्रन्थ कहते हैं कि जिस देश में गाय को कष्ट पहुंचाया जाएगा, उसका पतन अवश्यम्भावी है। और, यह हम स्वयं देख ही रहे हैं कि हमारा देश निरन्तर पतन के मार्ग पर जा रहा है।

गाय की रक्षा होती है, तो प्रकृति अनुकूल रहती है। गाय की रक्षा से भूमि की सेवा होती है और भूमि स्वयं अन्न देने वाली है। इसलिए, प्रत्येक भारतीय को गोरक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिये। तभी हम अपनी संस्कृति की और विश्व की रक्षा कर पाएंगे।

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